बुधवार, 19 मई 2010





बचपन का गाँव

वो जो बचपन का गाँव जिसे हम कहीं दूर छोड़ आए
चलो आज फ़िर से उसी गाँव की तरफ़ चला जाए

वो जो पीपल जिसके साए में गुजरती थी हर दोपहर
चलो आज फ़िर उसी पीपल की छाँव में बैठा जाए

वो जो गाँव की गलीयाँ जहाँ हम दौड़ा करते थे दिन भर
चलो फ़िर उन्ही गलीयों में बेमतलब घूमा जाए

वो जो अमराइयाँ जिनमे हम चुराया करते थे आम हर रोज़
चलो आज फ़िर उन्ही अमराइयों की तरफ़ चला जाए

वो जो बचपन का साथी हर खेल में जिससे होता था झगडा
चलो आज चलकर उससे गले मिलकर रोया जाए

बहुत हो चुका बेदिल बदइंतजाम आज का शहर
चलो फ़िर लौटकर नाशाद अपने गाँव बसा जाए