रविवार, 28 फ़रवरी 2010

तलाशती है आँखें 

बीते हुए लम्हे; भूली बिसरी यादें
यही सब तलाशती है आँखें

अपनों की भीड़ में अक्सर
खुद को तलाशती है आँखें

दुनिया भर के खराबों में
खुशीयाँ तलाशती है आँखें

तन्हाइयों और खामोशियों में
आवाजें तलाशती है आँखें

हर किसी के चेहरे में
तुम्हें तलाशती है आँखें

बंद पड़े उन दरीचों में
अपने तलाशती है आँखें

सूनी हो चुकी गलीयों में
यार तलाशती है आँखें

दम तोडती जिंदगी में
साँसें तलाशती है आँखें

यारों की सूनी महफ़िलों में

"नाशाद" को तलाशती है आँखें


 

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

खुद 

खुद की आँखों से आंसू बनकर; गिर चुका हूँ मैं
दूसरों की नज़रों से लोग गिराएंगे क्या मुझे

खुद को खुद ही के दिल से कब का निकाल चुका हूँ मैं
औरों के दिलों से लोग निकालेंगे क्या मुझे

खुद ही खुद को कब से सजा दे रहा हूँ मैं
औरों के ज़ुल्मों की सजा क्या देंगे लोग मुझे

खुद ही अपनी मंजिल से कब का भटक चूका हूँ मैं
गैर आकर अपनी राह से भटकायेंगे क्या मुझे

शीशा बनकर कब का टुकडे टुकड़े हो चुका हूँ मैं
झूठी दिलासा देकर लोग जोड़ेंगे क्या मुझे

किसी की याद बनकर तन्हाइयों में खो चुका हूँ मैं
मेरी यादों में बसकर लोग तड़पाएंगे  क्या मुझे



 

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

तेरा नाम मेरा नाम 

कितना अच्छा लगता था उन दिनों
लोग जब लेते थे तेरा नाम मेरा नाम

दीवारों पर यूंही  लिख  देते थे उन दिनों
लोग जब एक साथ तेरा नाम मेरा नाम

दो दिलों को मिलता देख उन दिनों
लोग याद करते थे तेरा नाम मेरा नाम

जब कोई गिनता था किसी की याद में तारे
लोग गिनाते थे सभी को तेरा नाम मेरा नाम

जब कोई लिखता था ग़ज़ल किसी की याद में
लोग गुनगुनाते थे प्यार से तेरा नाम मेरा नाम

जब कोई दीवाना घूमता था बेमतलब गलीयों में
लोग कहते थे  एक  दूजे से  तेरा नाम मेरा नाम

वक़्त के साथ बदल गयी ज़माने की तस्वीर
साथ ही  बिगड़ गयी  हम दोनों की  तकदीर

अब टूटता है  किसी  मुफलिस  का  दिल तो
लोग लेते हैं ख़ामोशी से तेरा नाम मेरा नाम

अब कोई  तड़पता है  किसी की याद  में तो
लोग लेते  हैं  धीरे से  तेरा नाम  मेरा नाम

अब कोई सोचता है  करने को मोहब्बत  तो
लोग याद दिलाते हैं उसे तेरा नाम मेरा नाम





       
एक बार पुन: अपनी दो पुरानी रचनाएँ आपके लिए पेश कर रहा हूँ. ये दोनों रचनाएँ मैंने १९८५ में ७ फरवरी के दिन लिखी थी. ७ फरवरी मेरा जन्मदिन भी होता है. सभी घरवालों की याद आ रही थी और दिल पुरानी यादों से भीग गया था. मैं कागज़ और कलम लेकर छत  पर आ गया. कुछ  सर्द हवाएं थी और आसमान में कुछ  घहरे तो कुछ छितराए सफ़ेद बादल. बस इन दोनों रचनाओं का जन्म हो गया. उम्मीद है आपको पसंद आएगी. 


तू 














तू  ही  दूर  तू  ही  करीब है
तेरा साथ कितना अजीब है

मेरी दोस्ती भी तुझी से हो
क्योंकि तू ही मेरा रकीब है

है दुआ तू मुझको नसीब हो
फिर अपना अपना नसीब है

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फिर तेरी याद 

















फिर से आई तेरी याद है
ऐ खुदा फिर फ़रियाद है

सावन आया बादल छा गए
फिर से बरसी तेरी याद है

ना मिलोगे तुम तो क्या हुआ
संग मेरे जो अब तेरी याद है

इस जहाँ में सब मुझसे दूर है
सब कुछ मेरा बस तेरी याद है

चाहे ढूंढ  ले  अब तू सारा जहाँ
ना मिलेगा जैसा ये "नाशाद" है

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

और कुछ याद नहीं 





















तेरी गलीयाँ तेरी महफ़िल
बस और मुझे कुछ याद नहीं
एक बस तू   एक बस मैं
बस और मुझे कुछ याद नहीं

चाहा तुझे और पूजा तुझे
अब  जीवन  मेरा बरबाद  नहीं
चाहे तू मिले या ना मिले
अब खुदा से कोई फ़रियाद नहीं

हकीकत में नहीं तो ख़्वाबों में आ
वर्ना जिंदगी मेरी आबाद नहीं
चाहूं जिसे और मुझे मिल जाए
ना पूरी हुई मेरी कोई मुराद  नहीं

जाकर मांग लूं खुदा से तुझे
हुई ऐसी कोई तरकीब ईजाद नहीं
तेरे इश्क में हम घरबार भुला दें
ऐसे  भी  हम  "नाशाद"  नहीं
ये कैसी मौहब्बत है 

ये कैसी मौहब्बत है  जहाँ इज़हार करना मना है
ये कैसी तन्हाइयां है जहाँ यादों का आना मना है

ये कैसी नींद है जिसमे यादों का आना मना है
ये कैसे ख्वाब है जिनमे किसी का आना मना है

ये कैसा जहाँ है जिसमे ग़मों पर आंसू बहाना मना है
ये कैसा वक़्त है जहाँ हमें खुशीयाँ तलाशना  मना है

ये कैसी बहारें है जिनमे गुलों का भी खिलना मना है
ये कैसा जहाँ है जिसमे  दो दिलों का मिलना मना है

ये कैसा सावन है  जिनमे  बादलों का बरसना  मना है
ये कैसी महफ़िल है जिसमे "नाशाद" का आना मना है

   

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010














जानूं 

मेरे लिए कौन हो तुम
ये तो सिर्फ मैं जानूं
मेरे लिए क्या हो तुम
ये तो सिर्फ मैं जानूं

जैसे  कोई  पूरा  हुआ  ख्वाब हो तुम
खुदा ने सुन ली  वो फरियाद हो तुम
ये तो सिर्फ मैं जानूं

एक लडकी  जानी  पहचानी-सी  हो तुम
जो अपनी ही लगी वो अनजानी  हो तुम
ये तो सिर्फ मैं जानूं

मेरी हर आरज़ू हो तुम
मेरी हर खुशी हो तुम
मेरी हर धड़कन हो तुम
मेरी जीवन-प्राण हो तुम
ये तो सिर्फ मैं जानूं

तुम ही हो मेरी जानूं
ये तो सिर्फ मैं जानूं

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

याद आता है 

















किसी का मिलना और फिर मुस्कुराना याद आता है 
किसी की गलियों में गुज़ारा वो जमाना याद आता है 

किसी खिड़की का खुलना और किसी का झांकना याद आता है 
किसी के साथ  वो बंधन अनजाना अब बहुत याद आता है

किसी का रोज वादा करना और ना निभाना याद आता है 
किसी का  मिलकर और बहाना बनाना बहुत याद आता है

किसी का दूर तलक मेरे साथ चलना बहुत याद आता है
किसी का हर बात पर हंसना और शरमाना याद आता है

किसी को याद करना और उसका सामने आना याद आता है
किसी का अलविदा कहना मुझे अब भी बहुत याद आता है

किसी का भूला हुआ चेहरा अब भी बहुत याद आता है

  

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

















मैं तुम्हारी याद हूँ 

अभी भी तुम्हारी सांसों की महक
मेरे चारों ओर है
अभी भी तुम्हारी हंसी की आवाज़
मेरे जहाँ में समाई है

अभी भी तुम्हारी ना ख़त्म होनेवाली बातें
मेरे कानों में गूंजती है
अभी भी तुम्हारे दिल की धड़कन
मेरे दिल में धड़कती है

अभी भी तुम्हारे होने का अहसास
मेरी आँखों में बसा हुआ है
अभी भी मेरी छाया में
अक्स तुम्हारा छुपा हुआ है

अभी भी तुम्हरे लौट आने की आस
मेरी उम्मीद में जिंदा है

तुम्हारी साँसे लेता हूँ
तुम्हारी बातें बोलता हूँ
तुम्हारी हंसी हँसता हूँ
तुम्हारी याद में जिंदा हूँ
क्योंकि मैं तुम्हारी याद हूँ
मैं तुम्हारी याद हूँ











तेरी याद 

फिर से आई तेरी याद है
ऐ खुदा फिर  फरियाद है

सावन आया बादल आ गए
फिर से  बरसी तेरी याद है

ना मिलोगे तुम तो क्या हुआ
संग मेरे जो  ये  तेरी  याद  है

इस जहां में सब मुझसे दूर है
सब कुछ मेरा बस तेरी याद है 

चाहे  ढूंढ  ले  अब तू सारा जहां
ना मिलेगा जैसा ये  "नाशाद" है

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010


















तुम्हें भुला ना पाई 

मैं तुम्हें भुला ना पाई प्रियतम
तुम्हें भुला ना पाई

वो तुम्हारी मुस्कान
वो आंखों की भाषा
जिनमें थी प्यार की अभिलाषा
वो ख़त पुराने
जिनमें थी प्यार की परिभाषा
वो सपन सुहाने
वो खनकती आवाज़
वो पहचानी सी आहट
वो मिलन की हर घडी
मैं तुम्हे भुला ना पाई प्रियतम
तुम्हें भुला ना पाई

वो मंदिर की दहलीज
वो अनसुनी प्रार्थनाएं
वो मज़ार पर चादरें
वो लौटी फरियादें
वो पीपल तले वादे
वो जनम जनम के वादे
वो सूने दरीचे
वो खाली राहें
वो अंतिम मिलन पर सुबकती रुलाई
अपनी जुदाई मैं ना समझ पाई

मैं तुम्हें भुला ना पाई प्रियतम
तुम्हें भुला ना पाई

जब भी चली कभी पुरवाई
मुझे तुम्हारी ही याद आई
मैं तुम्हें भुला ना पाई प्रियतम
तुम्हें भुला ना पाई

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010












साँसों की कमी लगे है 

मंजिल है सामने मगर रास्तों की कमी लगे है
जिंदगी बाकी है मगर  साँसों की कमी लगे है

दोस्त तो बहुत है हमारे मगर दुश्मनों की कमी लगे है
दुःख है ज़माने में बहुत मगर खुशीयों की कमी लगे है

बस्तियां तो बहुत है मगर इंसानों की कमी लगे है
हर नाता झूठा है यहाँ सच्चाईयों की कमी लगे है

किसी का दूर जाना भी अब तो करीब आना लगे है
मोहब्बतें बिखरी है यहाँ वहां तलाशों की कमी लगे है

दुआएं करता है हर कोई यहाँ मगर असर की कमी लगे है
महफ़िल में है कई सुखनवर मगर नाशाद की कमी लगे है  

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

वे भी लौट आयेंगे 
















आ गया वसंत सखि;
वे भी लौट आयेंगे
बगिया में खिले फूलों जैसे
सभी के चेहरे खिल जायेंगे

वृक्षों की डालीयाँ फूलों से लद गयी
फूलों की बगिया तितलियों से भर गयी
मुंडेरों पर चहक रही चिड़िया
लो फिर कागा आ गया
उनके आने का जैसे संदेसा आ गया
वे भी लौट आयेंगे

इतने दिनों की तन्हाई के बाद
फिर से दिन मिलन के आयेंगे
सुरमई आँखों में सखि
खुशीयों के आंसू छलक जायेंगे
लौट आया वसंत सखि
वे भी लौट आयेंगे

फलाश के वृक्षों पर फिर लालिमा छा गई
उड़ने लगा फिर अबीर गुलाल
रंगों की छठा चहुँ ओर छा गई
अधखुले  फूल सभी खिल जायेंगे
लौट आये सभी भंवरे सखि
लौट आया वसंत सखि
वे भी लौट आयेंगे 



फासला

एक वो भी ज़माना था
जब लिखा करते थे दरख्तों पर नाम तेरा
घने जंगलों की अनजान राहों में
देखा करते थे रास्ता तेरा
दूर उफक में हम कहीं
तलाशा करते थे चेहरा तेरा
खामोश वादीयों में
हम अक्सर पुकारा करते थे नाम तेरा

अब ज़माना बदल गया
और साथ वक़्त भी बीत गया
देखते देखते ही हम
दोनों में फासला हो गया

अब शायद ही कभी हम मिलेंगे
आने वाले दिन तेरी यादों में कटेंगे

अब खोजते हैं उन दरख्तों को
जिन पर तेरा नाम कभी लिखा था
अब खोजते हैं उन राहों को
जिन पर तेरा रास्ता कभी तका था
पतझड़ के सूखे पत्तों की खड़क ही
तेरा आना लगता है
दूर उफक में परिन्दों की परवाज़
तेरा चेहरा दिखलाती है
सूनी वादीयों में झरनों की आवाज़
तेरी हंसी की याद दिलाती है
















कितना कुछ बदल गया इन गुज़रे सालों में
कितना फासला हो गया इन दो ज़मानों में

दरिया के दो किनारों का सा अब साथ है हमारा
समंदर तक पहुँचते ही यह साथ भी छूट जायेगा
तब ये दिल हमेशा के लिए तेरी याद में खामोश हो जायेगा
फिर कभी नाशाद को, कोई साथ ना याद आएगा

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

इस रचना से मेरा बहुत अलग लगाव है. इसका एकमात्र कारण यह है कि  यह मेरी पहली रचना है. मैंने इसे ४ दिसम्बर १९८२ के दिन लिखा था. उन दिनों मैं बी एस सी द्वितीय वर्ष में था. मैं जोधपुर की लाचू कॉलेज में अध्ययनरत था. एक अलग और यादगार अनुभव था वो. मैंने लिखने के बाद अपने सभी दोस्तों को कॉलेज में सुनाया और इससे पहले कि वे कुछ कहते मैंने कहना शुरू कर दिया कि क्या तुम लोग ऐसा लिख सकते हो ? आज भी उस दिन को याद कर के मेरी आँखें नाम हो जाती है.वे दिन अब कभी लौट कर नहीं आयेंगे; बस युहीं यादों से अपनी तड़पाया करेंगे. कभी कभी मैं यह सोचने लग जाता हूँ और अक्सर सोचा करता हूँ कि हमें हमारा बीता हुआ वक्त हमेशा ज्यादा अच्छा या खुशनुमा क्यूँ लगता है ? जैसे जैसे वक्त गुज़रता जाता है ऐसे लगाने लगता है कि हम पहले कि तरह खुश नहीं है. धीरे धीरे गम बढ़ते हुए क्यूँ प्रतीत होते हैं ? ऐसा क्यूँ लगता है कि हम खुद से ही दूर हो गए हैं ? पहले की तरह हम अपने आप को इतना सहज महसूस क्यों नहीं कर रहे है ? क्या आप के पास इसका कोई ज़वाब है ?

मेरा ख्वाब 

दूर पहाड़ों कि गोद में होगा घर हमारा
चारों ओर  होगा  खुशीयों  का  नज़ारा

वहां पर ना होगा कभी ग़मों का अँधेरा
खिला रहेगा वहां सदा खुशीयों का सवेरा

दुनिया की हर ख़ुशी  होगी हमारी
कोई गम ना होगा दिल को गवारा

खुशीयों के बादल दिल के आसमानों पर छाएंगे
ठंडी हवाओं के संग हम गीत ख्सुही के गायेंगे


   

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

तुम ना थे 














बहार थी;  फूल थे,  महक थी
तुम ना थे

गलीयाँ थी; मोड़ थे , इंतज़ार था
तुम ना थे

शाम थी ; यादें थी , तनहाइयाँ थी
तुम ना थे

महफ़िल थी ; किस्से थे , ज़िक्र था
तुम ना थे

जुदाई थी ; तड़प थी , दुआएं थीं
तुम ना थे

ख़याल थे ; नींद थी , ख्वाब थे
तुम ना थे

राहें थी ; राही थे , मंजिलें थी
तुम ना थे

दिल था ; आरज़ू थी , उम्मीद थी
तुम ना थे

शेर थे ; ग़ज़ल थी , नाशाद था
तुम ना थे
बस सिर्फ तुम ना थे
हाँ यह घर मेरा है 
















हर एक कोना कुछ कहता है
छत पुरानी शामें याद कराती है
कमरे बा बाऊजी की आवाजें सुनाती है
सीढीयाँ पापा की पदचाप सुनाती है
यहाँ यादों का बसेरा है
जहाँ बीता बचपन मेरा है
हाँ यह घर मेरा है




जहाँ आंधीयां खुशबू लेकर आती है
सुबहें भोर राग सुनाती है
दोपहरें सन्नाटों में गुनगुनाती है
शामें अपनों की महफिलें सजाती है
रातें लोरीयाँ सुनाती है
यहाँ मेरे सभी पुरखों का बसेरा है
हाँ यह घर मेरा है


आरज़ू है हर शाम यहीं बीते
ज़िन्दगी की शाम भी यहीं ढले
हर जनम यहीं मिले
हम सभी  हर जनम में यहीं मिले

यहाँ मेरी रूह का बसेरा है

हाँ यह घर मेरा है
 हाँ यह घर मेरा है