रविवार, 19 जुलाई 2009


तलाशती है आँखें

बीते लम्हे भूली बिसरी यादें
यही सब तलाशती है आँखें

अपनों की भीड़ में अक्सर
ख़ुद को तलाशती है ऑंखें

दुनिया भर के वीरानों में
खुशीयाँ तलाशती है आँखें

तन्हाईयों खामोशियों में
आवाजें तलाशती है आँखें

हर बेगाने चेहरे में
किसी को तलाशती है आँखें

बंद पड़े तमाम दरीचों में
अपनों को तलाशती है आँखें

सूनी हो चुकी गलियों में
बिछुडे यार तलाशती है आँखें

दम तोड़ती हुई जिंदगी में
साँसें तलाशती है आँखें

टूटते हुए सभी रिश्तों में
करीबीयाँ तलाशती है आँखें

शाम ए ग़ज़ल है यारों
नाशाद को तलाशती है आँखें

चल कहीं चल

चल कहीं चल जहाँ कुछ देर ताज़ा हवा चले

चल कहीं चल जहाँ ग़मों की आंधी ना चले

चल कहीं चल जहाँ खुशियों का उजाला हो

चल कहीं चल जहाँ हर किसी पर ऐतबार हो

चल कहीं चल जहाँ ज़ज्बातों की कदर हो

चल कहीं चल जहाँ बचपन खिलखिलाता हो

चल कहीं चल जहाँ लोरियां सुलाती हों

चल कहीं चल जहाँ जिंदगी की हर साँस ताज़ा हो

चल कहीं चल जहाँ इंसानों में दूरीयाँ ना हो

चल कहीं चल जहाँ रिश्तों में करीबियां हो

चल कहीं चल जहाँ जिंदगी का बसेरा हो

चल कहीं चल जहाँ मौत का सन्नाटा ना हो

चल कहीं चल जहाँ गलियां और चौबारा हो

चल कहीं चल जहाँ नदियाँ और पहाड़ हो

चल कहीं चल जहाँ खुशियाँ बुलाती हो

चल कहीं चल जहाँ उदासीयाँ मुंह छुपाती हो

चल कहीं चल जहाँ अपनों का बसेरा हो

चल कहीं चल जहाँ पुर सूकून लम्हे हो

चल कहीं चल जहाँ करब अंगेज़ उजाले हो

चल कहीं चल जहाँ मुस्कानें बुलाती हो

चल वहीँ चल नाशाद चल वहीँ चल

शनिवार, 18 जुलाई 2009


बचपन का गाँव

वो जो बचपन का गाँव जिसे हम कहीं दूर छोड़ आए

चलो आज फ़िर से उसी गाँव की तरफ़ चला जाए


वो जो पीपल जिसके साए में गुजरती थी हर दोपहर

चलो आज फ़िर उसी पीपल की छाँव में बैठा जाए

वो जो गाँव की गलियां जहाँ हम दौड़ा करते थे दिन भर

चलो फ़िर उन्ही गलियों में बेमतलब घूमा जाए

वो जो अमराइयाँ जिनमे हम चुराया करते थे आम हर रोज़

चलो आज फ़िर उन्ही अमराइयों की तरफ़ चला जाए

वो जो बचपन का साथी हर खेल में जिससे होता था झगडा

चलो आज चलकर उससे गले मिलकर रोया जाए


बहुत हो चुका बेदिल बदिन्तिजाम आज का शहर

चलो फ़िर लौटकर नाशाद अपने गाँव बसा जाए

गुरुवार, 16 जुलाई 2009


वो

अक्सर सबसे छुपकर

वो मेरी तस्वीर बनाता क्यों है

कागजों पर लिखकर मेरा नाम

वो ज़माने से छुपाता क्यों है


देखकर सूरत मेरी

वो हर बार मुस्कुराता क्यों है

मेरे वापस मुस्कुराने पर

वो ख़ुद फ़िर शर्माता क्यों है


जब अपना दिल मुझे दे दिया तो

वो ज़माने से घबराता क्यों है

जब मैंने खुदा से उसे मांग लिया तो

वो दुआओं में मुझे मांगता क्यों है


इश्क में नहीं मिला करते गुलाब तो

वो काँटों से घबराता क्यों है

रोज़ मुझसे मिलता है फ़िर तो

वो मेरे ख्वाबों में आता क्यों है


उसके दिल में है तस्वीर मेरी तो

वो उसे मुझसे छुपता क्यों है

प्यार जब उसने मुझसे किया है तो

वो ज़माने को बताता क्यों है


मंगलवार, 14 जुलाई 2009

अपना गलियारा

है याद मुझे वो गलियारा

वो आँगन वो चौबारा

वो घर वो गाँव

वो बा बाउजी का चेहरा

उस आँगन में बा तुम

मुझको खूब खिलाती थी

अच्छाई का सच्चाई का

मुझको पाठ सिखाती थी

सीधी सीधी बातों में तुम

मुझे सीख अच्छी दे जाती थी

हर इंसान में भगवान् है

मुझे तुम रोज़ समझाती थी

वहां सरल जीवन मैं जीता था

भोलेपन की मिटटी में दिल रहता था

गाँव की गलियों में जीवन जी रहा था

बा - बाउजी की मुस्कानों में सारा जहाँ था

फ़िर वो दिन भी आया जब दूर जाना पड़ा

सब कुछ छोड़ सब कुछ भूल दूर जाना पड़ा

बाउजी को हमेशा हमेशा के लिए खोना पड़ा

गाँव गलियां चौबारा ना जाने क्यों छोड़ना पड़ा

कुछ लम्हे फ़िर भी बाकी बिताने को मिले

बा की जिंदगी से कुछ हिस्से मुझे और मिले

कितना खुशनसीब था मैं ; मुझे तीन माँओं ने पाला था

सब कुछ पाकर भी जैसे सब कुछ मैंने खो दिया है

ना जाने मुझे आज फ़िर क्यों मेरा गाँव याद आया है

ना जाने बा बाउजी ने उसे कहाँ छुपाया है

कोई मुझे आज ये बताये मैं क्यों जीवन हूँ हारा

क्यों छूटा है मेरा वो गाँव गलियां वो चौबारा

अपने आँगन से प्यार करो ; अपने गलियारों में खेलो

खुशीयों के तीर चलाओ ; सुख की लहरों से खेलो

जो वक्त आज गुजर रहा है फ़िर ना आएगा दोबारा

तुम तरसोगे आँगन को ; खोजोगे अपना गलियारा


आराधना


पहाडों के आँचल में ; नदियों की कलकल में

पक्षियों की कलरव में ; तारों की झिलमिल में


पलकों की छाँव में ; सपनों के गाँव में

शहरों की गलियों में ; यादों के बसेरों में

फूलों की कलियों में ; सावन के झूलों में

डायरी के भरे पन्नों में ; धुंधली होती तस्वीरों में

याद आती मुलाकातों में ; भूलती हुई यादों में

कभी जो किए थे वादों में ; अटल हमारे इरादों में


किसी को तलाश है तेरी

लौट आने की आस है तेरी

तुम बिन कोई आज भी अधूरा है

सूना किसी का बसेरा है


हर जगह तुझे कोई तलाशता है

हर दुआ में तुझे कोई मांगता है

हर रोज़ तेरी आराधना करता है

हर रोज़ तेरी तलाश करता है

लोग मुझे तेरी तलाश कहते हैं

लोग तुझे मेरी आराधना कहते हैं

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

कभी कभी

दिला बहला है तेरी यादों से तनहाईयों में कभी कभी

किनारों पर भी आकर डूबे हैं सफीने सागर में कभी कभी

सोचा था तेरी गलियों में अब ना आयेंगे हम कभी

फ़िर भी तेरी गलियों से होकर हम गुज़रे हैं कभी कभी

किया था ख़ुद से ये वादा के तुझे भूल जायेंगे हम

फ़िर भी तन्हाई में किया है हमने तुझे याद कभी कभी

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

अपना गाँव

बरसों बाद अपने गाँव पहुँचा तो रात भर
बचपन के सारे गीत मुझे सुनाती रही हवा

गाँव उजड़ चुका था हर दोस्त बिछुड़ चुका था
फ़िर भी इन सभी का अहसास कराती रही हवा

हर दोपहर का साथी वो बरगद सूख चुका था
उसके सूखे ठूंठ से टकराती फिरती रही हवा

सावन रूठ चुका था तालाब सूख चुका था
कागज़ की कश्तियों को ख़ुद ही उडाती रही हवा

वो आँगन सूना था जहाँ दादा दादी का बसेरा था
नाम उनका मेरे संग पुकारती रही हवा

मैं अकेला ही खड़ा था बचपन के उजडे गाँव में
नाम मेरा पुकारती और मुझे ही ढूंढती रही हवा

उजडा गाँव फ़िर से बसाकर क्या नाशाद यहीं रहोगे
अपने सवाल के ज़वाब का इंतज़ार करती रही हवा

सोमवार, 6 जुलाई 2009

आज मैं तुम पर दिल हार आया

चाहे तुम मेरी चंचलता कह लो

चाहे मन की दुर्बलता कह लो

ना जाने दिल क्यूँ मजबूर हो गया

देखा तुम्हें तो सब भूल गया

अज मैं तुम पर दिल हार आया

मैं आंसू हूँ तू आँचल है

मैं प्यासा हूँ तू सावन है

तुम चाहे मुझे दीवाना कह लो

या कोई पागल मस्ताना कह लो

अपना सब कुछ मैं छोड़ आया

मैं अपनी मंजिल तक भुला आया

आज मैं तुम पर दिल हर गया

मैं दिल हूँ तुम धड़कन हो

मैं प्रीत तुम तड़पन हो

तुम चाहे मुझे प्रेम रोगी कह लो

तुम चाहे मुझे मनो रोगी कह लो

तुम्हें याद करते करते सब भूल गया

मैं अपना नाम पता सब भूल गया

आज मैं तुम पर दिल हार गया

मैं जिस्म हूँ तुम जीवन हो

मैं चेहरा हूँ तुम दर्पण हो

तुम चाहे इसे पागलपन कह लो

या इश्क का मतवालापन कह लो

अपने नाम की जगह मैं तेरा नाम बता आया

अपने घर की जगह मैं तेरा पता बता आया

आज मैं तुम पर दिल हार गया

गली गली मैं भटका हूँ

पनघट पनघट मैं तरसा हूँ

तेरी कजरारी आंखों मैं भटका हूँ

अब तुम न मुझे ठुकराना

अब तुम न मुझे तरसाना

तुम चाहे इसे पागलपन कह लो

या तुम्हारे प्रेम का पूजन कह लो

तेरी मुस्कानों पर मैं अपना होश गवां आया

तेरी मासूम अदाओं पर मैं अपना सब कुछ गवां आया

आज मैं तुम पर दिल हार गया

मैं
मैं हूँ खुशबू हवाओं में बिखर जाऊँगा
मैं हूँ ख्वाब तेरी आंखों में बस जाऊँगा

मैं ग़ज़ल हूँ तेरी किताबों में लिखा जाऊँगा
दास्ताँ-ऐ-इश्क हूँ तेरी ; हर महफिल में सुना जाऊँगा

मैं हूँ सफर तेरी राह बन जाऊँगा
देखना किसी दिन तेरा बन जाऊँगा

मैं तलाश हूँ तेरी मंजिल बन जाऊंगा
ना भुला सकोगे मुझे तेरी यादों में बस जाऊँगा