शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

कैसे कोई तुम्हें भुलाए 

तुम थी तो सब रौनक थी
ये दुनिया जैसे कोई जन्नत थी
तुम बिन अब कुछ रास ना आए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए

तुम्हारी एक मुस्कान से जैसे
सारा जहाँ खिल उठता था
तुम्हारी आँखों की चमक से जैसे
मेरी राहें रोशन रहती थी
मंजिल लगने लगी है अब दूर
तुम बिन एक कदम भी ना चला जाए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए

हवाएं तुम्हारे इशारे पर बहती थी
कलियाँ तुम्हें देख खिलती थी
कोयल तुम्हारे संग गाती थी
तुम क्या गई गुलशन से जैसे
बहारे भी अब रूठ गई
तुम नहीं तो जीवन में मेरे
अब कौन बहारें लाए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए

फागुन अब फिर से आने को है
बौछारें अब रंगों की फिर उड़ने को है
हर प्रीतम के गालों पर
लाल हरा कोई रंग लगाएगा
लेकिन फागुन के दिन साथी
अब मेरा मन बहुत तरसेगा
तुम बिन कौन अब मेरी दुनिया में
फिर से रंग भरे और बरसाए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए

















अब मैं जीना सीख गया हूँ 
मैं अपनी धुन में रहता था
जो दिल चाहे वो करता था
मैं नहीं किसी की सुनता था
मैं यहाँ वहां भटकता था

सभी कहते थे कि मैं आवारा हूँ
जिसे कुछ ना मिला वो बेचारा हूँ
खुद अपनी किस्मत का मारा हूँ
नहीं किसी काम का मैं नाकारा हूँ

तुम क्या आई मेरे जीवन में
तुमने मुझे बदल डाला
प्रेम के दो घूँट पिला कर तुमने
बन दिया मुझे प्रेम मतवाला

अब मैं  सब कुछ भूल  गया हूँ
तेरी आँखों की झील में डूब गया हूँ

अब मैं तुम में खोया रहता हूँ
अब तेरी बातें ही सुनता हूँ
तेरी गलीयों में ही भटकता हूँ
तेरे ही सपने देखता हूँ

कहते हैं ये लोग सभी
मैं पहले भी आवारा था
और अब भी आवारा हूँ
मैं तेरे इश्क का मारा हूँ
मैं किसी का आशिक हूँ
और इसलिए नाकारा हूँ 

अब दुनिया को कैसे समझाऊँ
अब लोगों को मैं क्या समझाऊँ

कैसे कहूँ मैं आवारा नहीं
कैसे कहूँ मैं नाकारा नहीं

मैं कितना अब बदल गया हूँ
मैं यहाँ वहां की बातें भूल गया हूँ
अब मैं संभालना सीख गया हूँ
किसी को अपना बनाना सीख गया हूँ
हर सांस को जीना सीख गया हूँ
मैं प्रेम करना सीख गया हूँ
मैं अब जीना सीख गया हूँ
मैं अब जीना सीख गया हूँ