गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

 मेरी तरह अकेला

मेरी तरह वहाँ कोई अकेला ना था
धूप में मेरा कहीं साया तक नहीं था

सुनसान थी राहें उसके घर की मगर
उसकी यादों का कारवां  मेरे संग था

हर तरफ थी खामोशीयाँ और थी तन्हाईयाँ
याद आती उसकी बातों से सफ़र आसां था

वक्त की धूल ने मिटा दिए थे सभी रास्ते
उसके बदन की खुशबू उसके दर का रास्ता था 

बुझी हुई थी शम्मां महफ़िल में भी कोई ना था
फ़कत एक था नाशाद और एक खाली सफहा था