शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
क्यूँ कोई अपना भी बेगाना सा लगता है
क्यूँ हर कोई दिल तोड़ने की बात करता है 
क्यूँ हर कोई खुद को अलग समझता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल  में ख़याल आता है
क्यूँ अब रिश्तों गहराईयाँ कम है
क्यूँ अब इंसानों में मौहब्बतें कम है
क्यूँ अब हरसू रंजिशों का मौसम है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
क्यूँ अब हर दिन एक बोझ है
क्यूँ हर रात एक काला साया है
क्यूँ खुद से ही जुदा अब अपना साया है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
अब जब कोई आरज़ू बाकी नहीं
अब जब कोई रौशनी नज़र आती नहीं
तो क्यूँ ये निगाहें कुछ तलाशती हैं
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
हर तरफ जब रास्ते ही रास्ते हैं
जब कोई मंजिल नज़र नहीं आती
तो बेवजह क्यूँ ये राहें चल रही है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
हर नाता अब झूठा क्यूँ लगता है
हर धागा अब कच्चा क्यूँ लगता है
हर सांस अब बोझ क्यूँ लगती है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
नाशाद ये दिल अब डूबता जाता है
देखते हैं कोई मसीहा कब नजर आता है
हर मंज़र खौफज़दा नज़र आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है