मंगलवार, 30 मार्च 2010

आँखें मेरी सजल हो गई 

तुम क्या सामने आये प्रियतम
मैं ऐसी भाव-विव्हल हो गई कि
आँखें मेरी सजल हो गई

जाने कितने ही सावन आये
संग अपने तेरी यादें ले लाये
घने बादल फिर खूब बरसाए
पर ऐसी बरसात कभी ना हुई
तुम क्या सामने आये प्रियतम
आँखें मेरी सजल हो गई

तुम्हे खोजा मैंने सितारों में
तुम्हे पुकारा मैंने यादों में
करते करते याद तुम्हे प्रियतम
मैं ना जाने जैसे कहीं खो गई
तुम क्या सामने आये प्रियतम
आँखें मेरी सजल हो गई

अब ना कभी तुम होना दूर
मेरे ही सामने अब रहना तुम
मुझे जो भी ख़त लिखे थे तुमने
मेरे लिए जैसे वो ही ग़ज़ल हो गई
तुम क्या सामने आये प्रियतम
आँखें मेरी सजल हो गई

तुम बिन रहा ना जाए 

ढल गई है शाम अब
पंछी भी घर लौट आये
लौट आओ तुम भी सजना
अब तुम बिन रहा ना जाए

तुम्हारे वादे पर  मैं  जी रही हूँ
तुम्हारे नाम की साँसें ले रही हूँ
बहुत दूर है गाँव तुम्हारा
अब एक कदम भी चला ना जाए
लौट आओ तुम भी सजना
अब तुम बिन रहा ना जाए

तुम्हारी राहों में फूल बिछाए बैठी हूँ
तुम्हारी यादों के दिए जलाये बैठी हूँ
बहारों के मौसम भी है अब आनेवाले
फिर से चलने लगी है पुरकेंफ़ हवाएं
लौट आओ तुम भी सजना
अब तुम बिन रहा ना जाए

अब ना कभी मैं तुम्हें दूर जाने दूँगी
कैसी भी हो राहें संग तुम्हारे चलूंगी
फिर से छाएंगे बादल और बरसेंगी बरखा
इस बार भी सावन कहीं सूखा ना चला जाए
लौट आओ तुम भी सजना
अब तुम बिन रहा ना जाए