शुक्रवार, 21 मई 2010





















भूली बिसरी यादें

नज़रों में तो था मगर दिल से दूर था
वो मेरा होकर भी कभी मेरा ना था

बे चराग गलियों में उसकी आवाजें तो थी
दरीचों से झाँका मगर गलियों में कोई न था

उसके जाने के बाद दिल तो बहुत रोया
मगर आंखों में उसकी एक आंसू ना था

दूर तलक फैले तो थे उसकी यादों के काले साये
मगर धूप का कहीं नाम ओ निशान तक ना था

घर के  हर कोने में गूँज रही थी  उसकी आहटें 
आँख खोली तो फकत तस्वीर में उसका चेहरा था 

अब ना वो कभी लौटेगा, रहेगी सिर्फ उसकी यादें
नाशाद, पर दिल रोज कहेगा वो हमसफ़र मेरा था