सोमवार, 6 जुलाई 2009

आज मैं तुम पर दिल हार आया

चाहे तुम मेरी चंचलता कह लो

चाहे मन की दुर्बलता कह लो

ना जाने दिल क्यूँ मजबूर हो गया

देखा तुम्हें तो सब भूल गया

अज मैं तुम पर दिल हार आया

मैं आंसू हूँ तू आँचल है

मैं प्यासा हूँ तू सावन है

तुम चाहे मुझे दीवाना कह लो

या कोई पागल मस्ताना कह लो

अपना सब कुछ मैं छोड़ आया

मैं अपनी मंजिल तक भुला आया

आज मैं तुम पर दिल हर गया

मैं दिल हूँ तुम धड़कन हो

मैं प्रीत तुम तड़पन हो

तुम चाहे मुझे प्रेम रोगी कह लो

तुम चाहे मुझे मनो रोगी कह लो

तुम्हें याद करते करते सब भूल गया

मैं अपना नाम पता सब भूल गया

आज मैं तुम पर दिल हार गया

मैं जिस्म हूँ तुम जीवन हो

मैं चेहरा हूँ तुम दर्पण हो

तुम चाहे इसे पागलपन कह लो

या इश्क का मतवालापन कह लो

अपने नाम की जगह मैं तेरा नाम बता आया

अपने घर की जगह मैं तेरा पता बता आया

आज मैं तुम पर दिल हार गया

गली गली मैं भटका हूँ

पनघट पनघट मैं तरसा हूँ

तेरी कजरारी आंखों मैं भटका हूँ

अब तुम न मुझे ठुकराना

अब तुम न मुझे तरसाना

तुम चाहे इसे पागलपन कह लो

या तुम्हारे प्रेम का पूजन कह लो

तेरी मुस्कानों पर मैं अपना होश गवां आया

तेरी मासूम अदाओं पर मैं अपना सब कुछ गवां आया

आज मैं तुम पर दिल हार गया

1 टिप्पणी:

V Singh ने कहा…

Is kavita ka printout lekar maine kal hi apne doston ki mehfil mein jab sunaya to har kisi ne zabardast tareef kari. Miane sabhi ko aapke bare mein bataya. Maine aapse kya kahoon Nareshji; meri aankhen bhar aayee. Is kavita mein jo pravaah hai woh vaastav mein bahut hi sundar hai. Aapki kisi nayee racha ka intezaar hai.