शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

फासला

एक वो भी ज़माना था
जब लिखा करते थे दरख्तों पर नाम तेरा
घने जंगलों की अनजान राहों में
देखा करते थे रास्ता तेरा
दूर उफक में हम कहीं
तलाशा करते थे चेहरा तेरा
खामोश वादीयों में
हम अक्सर पुकारा करते थे नाम तेरा

अब ज़माना बदल गया
और साथ वक़्त भी बीत गया
देखते देखते ही हम
दोनों में फासला हो गया

अब शायद ही कभी हम मिलेंगे
आने वाले दिन तेरी यादों में कटेंगे

अब खोजते हैं उन दरख्तों को
जिन पर तेरा नाम कभी लिखा था
अब खोजते हैं उन राहों को
जिन पर तेरा रास्ता कभी तका था
पतझड़ के सूखे पत्तों की खड़क ही
तेरा आना लगता है
दूर उफक में परिन्दों की परवाज़
तेरा चेहरा दिखलाती है
सूनी वादीयों में झरनों की आवाज़
तेरी हंसी की याद दिलाती है
















कितना कुछ बदल गया इन गुज़रे सालों में
कितना फासला हो गया इन दो ज़मानों में

दरिया के दो किनारों का सा अब साथ है हमारा
समंदर तक पहुँचते ही यह साथ भी छूट जायेगा
तब ये दिल हमेशा के लिए तेरी याद में खामोश हो जायेगा
फिर कभी नाशाद को, कोई साथ ना याद आएगा

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