जिन्दगी में बहुत गम है और वक्त बहुत कम है. आइये महफ़िल सजाएं ग़ज़लों की . कविताओं की और कुछ देर के लिए ही सही हम थोडा वक्त निकालकर अपने को तरोताजा कर लें.
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
तेरी याद
फिर से आई तेरी याद है
ऐ खुदा फिर फरियाद है
सावन आया बादल आ गए
फिर से बरसी तेरी याद है
ना मिलोगे तुम तो क्या हुआ
संग मेरे जो ये तेरी याद है
इस जहां में सब मुझसे दूर है
सब कुछ मेरा बस तेरी याद है
चाहे ढूंढ ले अब तू सारा जहां
ना मिलेगा जैसा ये "नाशाद" है
जन्म भूमि - जोधपुर ; कर्म भूमि - मुंबई ; व्यवसाय - रेडिमेड वस्त्र ;
मैं लोगों को अच्छे साहित्य और पुस्तकों के संसार से फिर से जोड़ने का प्रयास मेरे ब्लॉग के माध्यम से कर रहा हूँ. सभी लोग मिलकर रहें और प्रेम से रहें. मनुष्य का जीवन जो केवल एक बार मिलाता है ; उस जीवन की हर सांस को हम चैन और ख़ुशी से जीयें.
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