ये कैसी मौहब्बत है
ये कैसी मौहब्बत है जहाँ इज़हार करना मना है
ये कैसी तन्हाइयां है जहाँ यादों का आना मना है
ये कैसी नींद है जिसमे यादों का आना मना है
ये कैसे ख्वाब है जिनमे किसी का आना मना है
ये कैसा जहाँ है जिसमे ग़मों पर आंसू बहाना मना है
ये कैसा वक़्त है जहाँ हमें खुशीयाँ तलाशना मना है
ये कैसी बहारें है जिनमे गुलों का भी खिलना मना है
ये कैसा जहाँ है जिसमे दो दिलों का मिलना मना है
ये कैसा सावन है जिनमे बादलों का बरसना मना है
ये कैसी महफ़िल है जिसमे "नाशाद" का आना मना है
गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
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