शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

एक बार पुन: अपनी दो पुरानी रचनाएँ आपके लिए पेश कर रहा हूँ. ये दोनों रचनाएँ मैंने १९८५ में ७ फरवरी के दिन लिखी थी. ७ फरवरी मेरा जन्मदिन भी होता है. सभी घरवालों की याद आ रही थी और दिल पुरानी यादों से भीग गया था. मैं कागज़ और कलम लेकर छत  पर आ गया. कुछ  सर्द हवाएं थी और आसमान में कुछ  घहरे तो कुछ छितराए सफ़ेद बादल. बस इन दोनों रचनाओं का जन्म हो गया. उम्मीद है आपको पसंद आएगी. 


तू 














तू  ही  दूर  तू  ही  करीब है
तेरा साथ कितना अजीब है

मेरी दोस्ती भी तुझी से हो
क्योंकि तू ही मेरा रकीब है

है दुआ तू मुझको नसीब हो
फिर अपना अपना नसीब है

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फिर तेरी याद 

















फिर से आई तेरी याद है
ऐ खुदा फिर फ़रियाद है

सावन आया बादल छा गए
फिर से बरसी तेरी याद है

ना मिलोगे तुम तो क्या हुआ
संग मेरे जो अब तेरी याद है

इस जहाँ में सब मुझसे दूर है
सब कुछ मेरा बस तेरी याद है

चाहे ढूंढ  ले  अब तू सारा जहाँ
ना मिलेगा जैसा ये "नाशाद" है

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