अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
जीवन कैसे बीत गया
दिन बीते साल बीते और
बस यूहीं जमाना बीत गया
अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
जीवन कैसे बीत गया
जीवन में पाया बहुत कम पर
बहुत कुछ जैसे खो दिया
मंजिल नहीं मिली अब तक पर
हर रास्ता जैसे खो दिया
अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
जीवन कैसे बीत गया
आनेवाला कल अच्छा होगा पर
इसी इंतज़ार में आज खो दिया
फिर कभी कहूँगा उसे दिल की बात
सोचते सोचते साथ उसी का छूट गया
अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
जीवन कैसे बीत गया
अब कुछ ना बचा
अब कुछ ना रहा
अब केवल यादें बाकी है
सन्नाटे हैं चारों ओर
बीती बातें गूंजती है
जो चेहरे हमसे दूर हो गए
वो चेहरे याद आते हैं
बंद कर लो आंख्ने तो
ख़्वाबों में आ जाते है
दूर दूर फैला है एक शून्य
अब मन बहुत अकेला है
जितना जिसके करीब गया मैं
वो उतना ही दूर हो गया
कभी कभी लगता है जैसे
खुद पर से भरोसा उठ गया
अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
जीवन कैसे बीत गया
जैसा चाहा था मैंने पर
वैसा ना मेरा अतीत गया
अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
जीवन कैसे बीत गया
जीवन कैसे बीत गया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें