शनिवार, 6 मार्च 2010

जीवन कैसे बीत गया

अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
जीवन कैसे बीत गया
दिन बीते साल बीते और
बस यूहीं जमाना बीत गया
                                    अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
                                     जीवन कैसे बीत गया

जीवन में पाया बहुत कम पर
बहुत कुछ जैसे खो दिया
मंजिल नहीं मिली अब तक पर
हर रास्ता जैसे खो दिया
                                    अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
                                     जीवन कैसे बीत गया 

आनेवाला कल अच्छा होगा पर
इसी इंतज़ार में आज खो दिया 
फिर कभी कहूँगा उसे दिल की बात 
सोचते सोचते साथ उसी का छूट गया 
                                        अक्सर कहता हूँ मैं खुद से 
                                        जीवन कैसे बीत गया

अब कुछ ना बचा 
अब कुछ ना रहा 
अब केवल यादें बाकी है
सन्नाटे हैं चारों ओर 
बीती बातें गूंजती है 
जो चेहरे हमसे दूर हो गए 
वो चेहरे याद आते हैं 
बंद कर लो आंख्ने तो 
ख़्वाबों में आ जाते है 
दूर दूर फैला है एक शून्य 
अब मन बहुत अकेला है 

जितना जिसके करीब गया मैं 
वो उतना ही दूर हो गया 
कभी कभी लगता है जैसे 
खुद पर से भरोसा उठ गया 
अक्सर कहता हूँ मैं खुद से 
जीवन कैसे बीत गया 

जैसा चाहा था मैंने पर 
वैसा ना मेरा अतीत गया 
अक्सर कहता हूँ मैं खुद से
जीवन कैसे बीत गया 
जीवन कैसे बीत गया 



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