वो मुझसे दूर हो गया
देखते ही देखते वो मुझसे दूर हो गया
एक ही पल में सदीयों का फासला हो गया
कल तक जो था अपना और था हमसाया भी
देखते ही देखते वो आँखों से ओझल हो गया
जिसे लेकर ज़िन्दगी के ख्वाब बुने थे हमने
देखते ही देखते वो खुद एक ख्वाब सा हो गया
जो कभी था हमनशीं, हमखयाल और हमसफ़र
देखते ही देखते वो मेरे लिए एक बेगाना हो गया
जिसे देखे बिना एक पल भी दिल को करार ना था
देखते ही देखते उससे बिछुड़े अब एक ज़माना हो गया
रविवार, 2 मई 2010
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16 टिप्पणियां:
जिसे लेकर ज़िन्दगी के ख्वाब बुने थे हमने
देखते ही देखते वो खुद एक ख्वाब सा हो गया
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल. क्या बात है नरेशजी. कोई ना भी मिला हो और ना बिछुड़ा हो लेकिन फिर भी पढ़कर ऐसा लगा जैसे कोई था.
बहुत ही शानदार
एक अनजानी सी तस्वीर सामने आ गई
बधाईयाँ नरेश जी. किन्नी सोहणी ग़ज़ल है. बेहद पसंद आई.
जिसे देखे बिना एक पल भी दिल को करार ना था
देखते ही देखते उससे बिछुड़े अब एक ज़माना हो गया
भाईसाहब क्या लिखा है ! बहुत खुबसूरत
जिसे लेकर ज़िन्दगी के ख्वाब बुने थे हमने
देखते ही देखते वो खुद एक ख्वाब सा हो गया
नाशाद साहब जब आप ग़ज़ल लिखते हो तो आपका दर्द और बेहतर ढंग से बाहर आता है. एक एक शेर में दर्द है. बेहतरीन . उम्दा
अच्छी ग़ज़ल है. बेहद दर्द और याद उभरकर आई है.
मेरी शुभकामनाएं स्वीकारें और इसी तरह लिखते रहें.
सुन्दर लेकिन दर्द से भरी हुई. बहुत अच्छा प्रयास जो कि सफल है.
हर शेर अपने आप में बहुत कुछ कहता है. एक बेहतरीन ग़ज़ल है आपकी भाईजान. बहुत शुक्रिया इस ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए.
नरेशजी , मुझे ये शेर याद आ गया आपकी ग़ज़ल पढ़कर ---
दर्द से मेरा दामन भर दे
फिर मुझको दीवाना कर दे
बधाई इस प्रस्तुति के लिए.
बस मेरी बधाई स्वीकारें. ग़ज़ल इतनी अच्छी है कि अल्फाज नहीं सूझ रहे.
BHAVABHIVYAKTI ACHCHHEE HAI.BADHAI.
जिसे देखे बिना एक पल भी दिल को करार ना था
देखते ही देखते उससे बिछुड़े अब एक ज़माना हो गया
bahut hi aachi line h padh kar gujre jamnae ki yaad taza ho gaye..
subhkamana aapko
BAHUT KHUB
BADHAI AAP KO IS KE LIYE
बहुत सुन्दर रचना है. हर एक शब्द में एक अलग तरह की जान है.
....बहुत खुबसूरत
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