सोमवार, 10 मई 2010

आज से अपनी कुछ पुरानी रचनाएँ पुन:प्रकाशित कर रहा हूँ. कुछ रचनाएं मैंने मेरे कॉलेज के दिनों में लिखी थी. उन रचनाओं के बारे में मैं संबधित रचना के साथ ही लिखा करूंगा. इससे मैं कुछ अपने बीते हुए बहुत ही सुहाने पलों को भी याद कर लूँगा और आपको भी अपने बीते हुए कल की सैर करवाया करूँगा. आशा है ये प्रयोग आपको पसंद आयेगा. मैं अपनी बीती जिन्दगी की कुछ यादगार और कुछ खट्टी-मीठी घटनाओं को अपने दूसरे ब्लॉग " यादों के झरोखों से"  www.sitanchal.blogspot.com पर कल से पोस्ट करना आरम्भ कर रहा हूँ. अपनी यादें और कुछ अपने दिल की बातों को आपके साथ बांटना चाहता हूँ. आप सभी ने मेरी ग़ज़लों , कविताओं और नज्मों को पसंद किया है ; आशा है यादों के झरोखों से जब आप मेरी बीती हुई ज़िन्दगी में झांकोगे तो वो भी आपको उतनी ही पसंद आयेगी.  
तो लिजीये इस कड़ी की पहली रचना. इसे मैंने १९८३ में लिखा था. उन दिनों मैं  बी एस सी द्वितीय वर्ष में था और फाइनल वर्ष के विद्यार्थीयों के विदाई समारोह के दिन मैंने इसे पढ़ा था. मुझे आज भी याद है हमारे हिंदी के प्रोफ़ेसर श्री लक्ष्मीकांतजी  जोशी ने मुझे उपहार स्वरुप अपना एक पेन दिया था. उस रचना को आज मैं उन दिनों को फिर से याद करते हुए इसे आप सभी लोगों के हवाले कर रहा हूँ. अपनी टिप्पणी जरुर भेजिएगा. मुझे अपने लेखन को सुधारने में बहुत मदद मिलेगी.











ना हो जुदा

मेरे हमसफ़र मेरे हमकदम
ना हो तू अब मुझसे जुदा
मेरे हमराज़ मेरे हमनशीं
तू ही है अब मेरा खुदा

मेरे हमराज़ मेरे हमराह
मुझको बस तेरी ही चाह
मेरे हबीब रह मेरे करीब
ना हो तू अब मुझसे जुदा

मेरे महजबीं मेरे राजदार
मेरे दिल को है तुझसे करार
मेरे माहताब तुझे मेरी कसम
ना हो तू अब मुझसे जुदा

मेरे राज-ऐ-दिल मेरी जुस्तजू
तू ही मेरी आखिरी आरजू
मेरे आफताब तुझे खुदा कसम
ना हो तू अब मुझसे जुदा

9 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आप तो कॉलेज के जमाने में भी इतना अच्छा लिखते थे. बहुत अच्छी लगी. आपने जिस समय इसे पढ़ा; यह जानकर मुझे भी अपने कॉलेज के दिन याद आ गए.

Unknown ने कहा…

अतिसुन्दर नज़्म. नरेशजी आपको इस नज़्म के लिए जो उपहार मिला वो सही था. भला ऐसी तड़प लिए नज़्म के लिए कौन उपहार नहीं देगा!
कॉलेज के दिन भुलाये नहीं भूलते.

Unknown ने कहा…

कॉलेज का जिक्रकर आपने मुझे भी कुछ पलों के लिए अपने बीते हुए दिनों कि याद दिला दी. बहुत ही अच्छी रचना है. काश वो ज़माना फिर से लौट आए,
मेरे हमसफ़र मेरे हमकदम ना हो तू अब मुझसे जुदा
मेरे हमराज़ मेरे हमनशींतू ही है अब मेरा खुदा

Aakaash Vajpayee ने कहा…

बेहद ही सुन्दर. कितनी चाहत है महबूब के लिए. बहुत बहुत बधाई.

Tulsi Purohit ने कहा…

आपकी नज़्म बहुत पसंद आई. शुभकामनाएं नरेशजी.

Unknown ने कहा…

आपका यह प्रयास बहुत पसंद आया और साथ ही यह रचना भी. बहुत खुबसूरत लगी.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

Unknown ने कहा…

उम्र के लिहाज से यह बेहतरीन है. एक अलग ही अदा है और एक अलग ही बेखुदी है जो तड़प के साथ दिखाई दी है.

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

nresh ji raajsthaan men mukhymntri ashok gehlot ki dhrti pr rhkr aapne saahity kaa jo uddhaar krte hue km shbdon men zindgi snvaarne ka jo kaam shuru kiyaa he voh bhut khub he iske liyen bdhaai. akhtar khan akela kota rajsthan