मंगलवार, 1 जून 2010

































तुझ में बसी है मेरी जान रे

तोहे कैसे भुलाऊँ सजनवा
तुझ में बसी है मेरी जान रे
मोहे ना तू बिसराना कभी
तुझ बिन तज दूंगी प्राण रे

मोहे ना आए एक पल भी चैन
तारे गिन गिन काटू मैं रात रे
होरी खेले सखियाँ पिय के संग
मोरा साजन नहीं मोरे साथ रे

गए हो जब से परदेस सजनवा
आया ना कोई संदेस रे
भेजो अब अपनी कोई खबरिया
तन से उखड रही सांस रे

आ गई फिर रुत बरखा की
बरस रहा आसमान रे
ताना मारे हैं सारी सखियाँ
तन मन में लग रही आग रे

राह तोहरी निहारते सजनवा
पथरा गई है अब आँख रे
लौट आओ नहीं तो चल दूंगी
अब लेकर मैं चार कहार रे

19 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत है।बधाई स्वीकारें।

Unknown ने कहा…

नरेशजी; ऐसा लगा जैसे पुराने जमाने में कोई संगीत की महफ़िल सजी हुई है , मैं उसी महफ़िल में हूँ और ये गीत गाया जा रहा है. एक बात कहूँ आप बिरहन के मन की पीड़ा को बहुत ही अच्छी तरह से अपनी रचनाओं में उतारते हो. बहुत ही बधाई और शुभ-कामना.

Unknown ने कहा…

कितना खुबसूरत गीत है. साथ के चित्रों ने इसकी शोभा और भी बढा दी है.

माधव( Madhav) ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत है

Unknown ने कहा…

अत्यंत सुन्दर शब्दों से लिखा गया गीत.

Priyamwada Kanwar Sisodia ने कहा…

सुगम संगीत के कार्यक्रम की याद आ गई इसे पढ़कर. बहुत ही बधाई भाईसा.

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुरीला गीत लगा. इस अंतरे ने दिल मोह लिया.

राह तोहरी निहारते सजनवा
पथरा गई है अब आँख रे
लौट आओ नहीं तो चल दूंगी
अब लेकर मैं चार कहार रे

Unknown ने कहा…

Very good song. Beautiful photographs. Congratulations Sir.

Unknown ने कहा…

तोहे कैसे भुलाऊँ सजनवा
तुझ में बसी है मेरी जान रे
- मनमोहक गीत. पूर्ण समर्पण के भाव लिए. बहुत सुन्दर.

Unknown ने कहा…

पनघट पर कोई गाँव की गोरी खड़ी यह गीत गा रही है. वाह नरेशजी वाह. बहुत ही अच्छा विरह भाव वाला गीत लिखा है. हमारी ओर से बहुत बधाई और खूब खूब शुभ-कामनाएं.

Unknown ने कहा…

खुबसूरत गीत है.बहुत ही बधाई.

Unknown ने कहा…

आपकी शैली से ये थोडा हटकर लगा. लेकिन बहुत अच्छा लगा. मेरी बधाई स्वीकारें.

Shafaqat Ali Hasan ने कहा…

बहुत दिनों से आपको पढता आ रहा हूँ नाशाद भाईजान; लेकिन आज कुछ एकदम नया पढ़ा तो मेरे हाथ खुद-बा-खुद लिखने के लिए उठ गए.
श्याम जी ने भी यही लिखा है कि आपकी शैली से अलग आज पढने के लिए मिला. वाकई में बहुत उम्दा है. मुबारकबाद.

Ra ने कहा…

चित्र ..लाजवाब ..चुना है

Ra ने कहा…

सुन्दर शैली ,,सुन्दर रचना ,,,पढने में बहुत पसंद आई ,,,

manjul ramdeo ने कहा…

तोहे कैसे भुलाऊँ सजनवा
तुझ में बसी है मेरी जान रे
- bahut hi sunder geet virah ke man ki pida es geet m mahsoos ho rahi h
as usual photographs bahut hi aachi h......

शिवम् मिश्रा ने कहा…

अफरीन अफरीन .........................क्या गीत रचा है आपने !! बेहद उम्दा .................आज के दौर के सूफी गायक कैलाश खैर, या काश के उस्ताद मरहूम नुसरत फ़तेह अली खान साहब जिंदा होते, की आवाज़ में इस गीत को सुनने की एक तम्मना दिल में जाग उठी !

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

शिवमजी; बहुत बहुत आभार आपका. मुझे खुद सूफी संगीत बहुत ही पसंद है. एक गीत है " कदी आ मिल सावल यार वे ; मेरे रूं रूं चीख पुकार वे."
यह गीत मेरे दिल को बहुत छू गया था. बस उसी गीत को आधार बनाकर मैंने ये छोटा-सा प्रयास किया है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

... बेहद प्रभावशाली