मैं जैसे महक गया हूँ
तेरी आँखों में
तेरी मुस्कानों में
मैं जैसे खो गया हूँ
तेरी जुल्फों में
तेरी बातों में
मैं जैसे उलझ गया हूँ
तेरे वादों से
तेरे ईरादों से
मैं जैसे बहक गया हूँ
तेरी गलीयों में
तेरी महफिलों में
मैं जैसे भटक गया हूँ
तेरी तस्वीर से
तेरी याद से
मैं जैसे महक गया हूँ
मैं जैसे महक गया हूँ
शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
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7 टिप्पणियां:
छोटी सी लेकिन अच्छी कविता.
तेरी याद से महक गया हूँ. बेहद हसीन
मेरे लिए ही आपने ये कविता लिखी है. जब घर से ख़त आता है तो मेरी हालत ऐसी ही हो जाती है. उसकी याद से महक जाता हूँ. उसकी बातों में खो जाता हूँ.
सत श्री अकाल प्राजी. वड्डी चंगी कविता लिख्खी हेगी आपने. आपका ब्लॉग बड़ा अच्छा लगा.
बढ़िया रचना.
अच्छी कविता.
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
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