रविवार, 25 जुलाई 2010

















इश्क इबादत है खुदा की

इश्क इबादत है खुदा की बस इश्क ही इश्क कीजै
ता उम्र नाशाद  बस इश्क ही लीजै  इश्क ही दीजै

हर दिल में है नफ़रत  परेशां है हर शख्स यहाँ
हर शख्स को यहाँ बस पैगाम-ए-इश्क ही दीजै

ना जाने कब कोई हम से बेसाख्ता दूर हो जाए
जब भी मिले कोई तो उसे सलाम-ए-इश्क दीजै

बहुत हुए जुदाई के किस्से; टूटे दिल औ' हिज्र की बातें
सजाइये अपनों की महफ़िल औ' इश्क की बातें कीजै

चार दिनों की जिंदगी है  आरजुओं में कहीं  निकल ना जाए
खोजिये कोई हमखयाल औ' दिल पर उसके इश्क लिख दीजै

सफ़र जिंदगी का नहीं आसां कब तक चलोगे अकेले तुम
करिए किसी से सच्चा इश्क औ' साथ उसे अपने ले लीजै

नफरतें फैलाओगे तो नहीं रखेगा ये जहां तुम्हें याद
फैलाइये हर सू इश्क औ' जहाँ में अपना नाम कर लीजै

पढ़े होंगे कई सुखनवर और भी कई जहाँ में मिल जायेंगे
महफ़िल खूब जम जायेगी यारों बस नाशाद को बुला लीजै

14 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

नरेशजी; इतने दिन कहाँ रह गए. आपकी रचनाओं का इंतज़ार था. इस रचना ने उस कहावत तो सच साबित किया कि इंतज़ार का फल मीठा ही होता है. बहुत खूब लिखा है आपने इश्क इबादत है खुदा की. आपका सन्देश हर दिल तक पहुंचे.

Unknown ने कहा…

बहुत हुए जुदाई के किस्से; टूटे दिल औ' हिज्र की बातें
सजाइये अपनों की महफ़िल औ' इश्क की बातें कीजै
बेहद ही खुबसूरत ग़ज़ल. दो पोस्ट के बीच इतना अंतर मत रखिये नरेशजी; हमें आदत पड़ चुकी है आपकी रचनाओं की.

Unknown ने कहा…

आपने एक बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है. हर शेर में इश्क का पैगाम बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देता है. मेरी बहुत बधाई.

Abbas Naqvi ने कहा…

क्या बात है जनाब. आज यही पैगाम सब के लिए जरुरी है. बहुत हो चुकी नफरतें

Unknown ने कहा…

यूँ तो पूरी की पूरी ग़ज़ल लाजवाब है लेकिन ग़ज़ल की जान है ये शेर -

नफरतें फैलाओगे तो नहीं रखेगा ये जहां तुम्हें याद
फैलाइये हर सू इश्क औ' जहाँ में अपना नाम कर लीजै

Unknown ने कहा…

टिप्पणी क्या करूँ; इतनी अच्छी लगी है कि बस पढता ही जा रहा हूँ.

अजय कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर रचना ,इश्क पर ।बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

V Singh ने कहा…

बहुत शानदार ग़ज़ल. बधाई भैया.

Unknown ने कहा…

नरेशजी; बेहद ही खुबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने. मेरी हार्दिक बधाई और शुभ कामना.

Unknown ने कहा…

केवल नाशाद है. ग़ज़लें और गीत अलग तरह के हैं. मेरी भी मांग है नरेशजी; आप नाम बदल लें

Inder Chopra ने कहा…

सुभान अल्लाह. क्या लिखा है सर जी. दिल खोलकर बधाईयाँ.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

भई हमारे अन्दर का कवि भी जोर मारने लगता है आपको पढके, कैच किजीये:

एक मित्र ने एस एम एस भेजा:

कौन किसको दिल में जगह देता है,
पेड भी सूखे पत्ते गिरा देता है!
हम वाकिफ हैं दुनिया के चलन से,
मरने पे कोई अपना ही जला देता है!

उन्हें मेरा जवाब, और आपके कलाम को मेरा सलाम:

ये सच है ऐ मेरे रफीक, हमें आना और जाना है!
किसी को दफ्न होना है, किसी को अपनों ने जलाना है!
मगर जब तक हम और तुम हैं मतलबी इस दुनिया में....
मुझे बस इश्क करना है, तुम्हें उसको निभाना है!

बाई द वे, कित्थे सीगे तुस्सिं?
मैं फेर कहंदा तुहानू, नाशाद तों शाद हो जाओ!

manjul ने कहा…

नफरतें फैलाओगे तो नहीं रखेगा ये जहां तुम्हें याद
फैलाइये हर सू इश्क औ' जहाँ में अपना नाम कर लीजै
prem se rahne or prem se baate karne par har koi yaad rakhta h...
ye lines bahut hi aachi h ....