सोमवार, 16 अगस्त 2010

कभी तुम भी थे मेरे अपने 

कभी तुमने भी हमें बहुत चाहा था
कभी हमारा भी रास्ता निहारा था


कभी तुमने भी देखे थे ख्वाब मेरे
कुछ दिन ही सही चले थे साथ मेरे


कभी तुमने भी थामा था हाथ मेरा
कभी तुमने भी संवारा था मुकद्दर मेरा 


कभी तुम भी तड़पते थे मेरी याद में
कभी हम भी शामिल थे तेरी फ़रियाद में 


कभी तुम भी आए थे महफ़िल में मेरे
कभी तुमने भी सराहे थे अशआर मेरे 


कभी तुम भी तो हुए थे मेरे अपने 
अब तो वो रह गए हैं फ़कत सपने 


नाशाद जिनके देखे थे ख्वाब हमने
हकीकत में ना हो सके मेरे अपने 



13 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

नरेशजी, क्या बात है आजकल आपकी रचनाएँ बहुत कम आ रही है? कृपया इतना फासला मत रखिये. हमें बहुत इंतज़ार रहता है आपकी रचनाओं का. बहुत ही सुन्दर रचना है. सपने और हकीकत, मौहब्बत की यही निशानीयाँ होती है.

Unknown ने कहा…

जिनके देखे थे ख्वाब अपने , हकीकत में ना हो सके मेरे अपने. बहुत खूब. हर कोई इसे पढ़कर गुजरा जमाना याद कर लेगा. चाहे वो कोई प्यार था या कोई मित्र या कोई रिश्तेदार. अतिसुन्दर. बधाई.

Unknown ने कहा…

जनाब नाशाद साहब यूँ हमारे सब्र का ना इंतज़ाम लीजै. भाई कुछ कमी है हमारी वाह वाह में जो आप इतना कम महफिलों में आ रहे हैं. अब आपको हर बार की तरह ही महफ़िल सजानी है. अच्छी ग़ज़ल. कोई हमने भी आपकी तरह याद आ गया. मिलने बिछुड़ने का नाम ही जिन्दगी है.

Unknown ने कहा…

एक लम्बे अरसे के बाद आपके ब्लॉग पर नई पोस्ट ग़ज़ल के रूम में पढने को मिली लेकिन हर बार की तरह बहुत उम्दा लिखा है आपने.

Unknown ने कहा…

गज़ब के जज़्बात! गज़ब की तड़प! बधाई सा आपने बहुत बधाई.

Unknown ने कहा…

शुक्रिया नाशाद साहब, इस बहुत ही जज्बातों से भरी हुई ग़ज़ल के लिए.

Unknown ने कहा…

बेहतरीन ग़ज़ल भाईजान. कहाँ रह गए थे इतने दिन? हम तो आपके ब्लॉग का नाम भूलने लगे थे.

Unknown ने कहा…

बढ़िया और बहुत ही बढ़िया रचना. शुभकामना

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब ......स्वतंत्रता दिवस कि ढेर सारी शुभकामनयें

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छी ग़ज़ल. हमारी बधाई.

Unknown ने कहा…

कुछ दिन ही सही चले थे साथ मेरे - ये पंक्ति दिल को छु गई. कुछ पुरानी यादें ताजा हो उठी.

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhaayi jaan khudaa aapke spne hqiqat men bdle. akhtar khan akela kota rajstha

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...