बुधवार, 18 अगस्त 2010



अनिल कल्ला ( बेटूसा ) : एक श्रद्धांजलि 

बेटूसा मेरा सबसे प्यारा और करीबी दोस्त १२ अगस्त को हमेशा हमेशा के लिए हम सबसे और मुझसे दूर हो गया. उसके मैं शायद अधुरा हो गया हूँ. उसके साथ बिताया हुआ एक एक पल मुझे आज तक याद है और हमेशा रहेगा. वो हर रोज याद आयेगा और रुलाएगा. उसकी आवाज अब मैं कभी ना सुन सकूंगा लेकिन उसकी बातें हमेशा मुझे याद रहेगी. उसकी वो मुस्कराहट और मिलते ही कहना " वाह वाह , नरेशजी वाह वाह " अब इस तरह से मुझे कौन कहेगा?" जब भी मैं कोई ग़ज़ल लिखता था तो सबसे पहले उसे ही सुनाता था. वो सुनते ही दाद देता और कहता " कोई धुन बना ताकि हम दोनों इसे गुनगुनायेंगे." कुछ समय पहले भी मैंने उसे मेरी लिखी एक ग़ज़ल उसे फोन पर सुनाई तो वो बोल उठा था " वाह वाह नाशाद साहब, वाह वाह , आज कुछ अलग ही रंग है." अब मैं किसे अपनी ग़ज़ल पढ़कर सुनाऊं? मेरा यार मेरा दोस्त और मेरा हमखयाल मुझे बहुत दूर चला गया है.
हम दोनों ने कॉलेज के दिनों में हर रोज हर पल एक साथ बिताया. ना जाने कितनी ही गज़लें हमने एक साथ गाई थी. कोई सुने या ना सुने हम दोनों जब भी मूड होता गुनगुनाने लग जाते. कॉलेज के फेयरवेल के दिन मैंने जो ग़ज़ल सबके सामने पढ़ी थी उसका एक हिस्सा मैं उसके लिए श्रद्धांजलि के रूप में लिख रहा हूँ - 

***** मेरे यार ******

" तुमसे जुदा हो रहा हूँ यारों
तुम्हें मेरा आखिरी सलाम यारों

तुम्हारे साथ गुज़रे ये ज़माने हर दम याद आयेंगे 
शाम ढलेगी तो यादों के साये और भी गहराएंगे 
तुम भी हर शाम मुझे याद करना यारों

तनहा वादियों में तुम्हारी यादें ही गूंजेंगी
दिल की महफ़िल में तुम्हारी कमी खलेगी
तुम भी अपनी महफ़िल में मेरा ज़िक्र करना यारो

हर सुहाना मौसम तुम्हारी याद दिलाएगा
तुम्हें भी तो मेरा गम कभी कभी सताएगा
मगर मेरी याद में कभी ग़मगीन ना होना यारों

हर बहारों का मौसम तुम्हारी याद ले आयेगा
तुमसे मिलने का वो मौसम फिर लौट आयेगा
महफिलों में मिलन-बहार के गीत गाना यारों

दूर रहेंगे तो क्या दोस्ती युहीं बनी रहेगी
तुमसे मिलने की ईच्छा हर वक्त दिल में रहेगी
तुम भी मुलाकात के लिए दुआ करना यारों 

ना जाने अब तुमसे कब मुलाक़ात होगी
हर शाम अब सुहानी कभी ना होगी 
मगर हर शाम तुम युहीं गुजारना यारों

तुमसे जुदा हो रहा हूँ मेरे यारों
तुम्हें मेरा आखिरी सलाम यारों  
 हर सुहाना मौसम तुम्हारी याद दिलाएगा
तुम्हें भी मेरा गम कभी कभी सताएगा
मगर मेरी याद में कभी ग़मगीन ना होना यारों ....

तुमसे जुदा हो रहा हूँ यारों
तुम्हें मेरा आखिरी सलाम यारों 
अनिल  , तू बहुत याद आयेगा ,..........
अब जब तू मुझसे हमेशा के लिए दूर हो गया है तो आज मैं मेरी ये ग़ज़ल तेरे नाम करता हूँ और तुझे सुनाता हूँ. आज के बाद मैं ये ग़ज़ल  कभी नहीं पढूंगा. 

7 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आपके दुःख को मैं समझ सकती हूँ. जब इतना अच्छा और बहुत करीबी दोस्त जुदा हो जाता है तो दिल खून के आंसू रोने लग जाता है. आपकी नज़म रुला गई. आपने किस दिन के लिए लिखी थी और किस दिन के लिए काम आई. अनिलजी को मेरी भी श्रद्धांजलि

Kabeer Mehta ने कहा…

नरेशजी, मैं लाचू कॉलेज में था जब आप और अनिल फायनल इयर में थे. मैं आप दोनों को बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ. मैं अक्सर आप दोनों को अहमद और मोहम्मद हुसैन कहकर पुकारता था क्यूंक आप दोनों साथ साथ चलते हुए हमेशा ग़ज़लें गुनगुनाते रहते थे. मुझे बहुत ही दुःख पहुंचा है अनिल के इस तरह से जाने से. मैं सकते में हूँ की ये कैसे हो गया. आपकी यह नज़म मैंने उस दिन फेयरवेल के दिन सुनी थी और आज वापस पच्चीस साल बाद पढ़ी है. यही सच्ची श्रद्धांजलि है.

Unknown ने कहा…

इतनी कम उम्र में दुसरे जहाँ में जाना दिल को बहुत दर्द दे जाता है. आपका तो सबसे करीबी यार थे अनिलजी. आपकी नज़म दिल को अन्दर तक रुला गई है. मुझे नहीं सूझ रहा की और क्या कहूँ. बस....

Unknown ने कहा…

एक सच्चे दोस्त के लिए एक सच्चे दोस्त द्वारा सच्चे मन से लिखी गई एक सच्ची श्रद्धांजलि.

Unknown ने कहा…

Nareshji, I M shocked by the sad demise of your best friend. He looks so young. आपने बहुत अच्छा लिखा है. दिल बैठ रहा है इसे पढ़कर.

Unknown ने कहा…

इससे अच्छी और क्या श्रद्धांजलि हो सकती है जब एक दोस्त अपने सबसे अच्छे दोस्त के लिए अपनी ग़ज़ल उसके नाम लिख दे. ॐ शांति

Unknown ने कहा…

एक एक अल्फाज इस नज़म का दिल से लिखा हुआ है.