तुम बिन सब अधूरा होगा
फिर वो ही चाँद होगा
वो ही सितारों का कारवां होगा
फिर वो ही बहारें होगी
वो ही फूलों का नजारा होगा
सब कुछ होगा मगर फिर भी
तुम बिन सब अधूरा होगा
फिर वो ही गाँव और चौबारा होगा
वो ही पनघट का नजारा होगा
फिर वो ही आपस में बतियाती सहेलीयां होगी
वो खिलखिलाहट और मुस्कानें होगी
सब कुछ होगा मगर फिर भी
एक चेहरा वहाँ नहीं होगा
फिर वो ही पीपल की छाँव होगी
वो ही इंतज़ार होगा
फिर वो ही दोपहर की धूप होगी
वो ही तेरी यादें होगी
सब कुछ होगा मगर फिर भी
जब तू नहीं होगा तो कुछ नहीं होगा
फिर वो ही डायरी होगी
वो ही तेरा नाम होगा
मगर हाथ ना अब उठेंगे
आँखों से अश्कों का इक नया रिश्ता होगा
डूबते दिल को तेरी यादों का सहारा होगा
फिर वो ही महफिले होगी
वो ही ग़ज़लों का सफ़र होगा
फिर वो ही शमा होगी
मगर इक आवाज ना होगी , जब
नाशाद उस महफ़िल में ना होगा
जब तू ही नहीं होगा तो
नाशाद अब कहाँ होगा
नाशाद कहीं नहीं होगा .......
शनिवार, 9 अक्तूबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
8 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरती से लिखे हैं मन के भाव .
बहुत ही भावपूर्ण कविता.
आपका चिरपरिचित रंग फिर ने नज़र आया नरेशजी. किसी से बिछुड़ने का गम और उसका दिल से किया गया वर्णन. बधाई नरेशजी,
बहुत सुन्दर भइय्या. बहुत अंतराल के बाद लेकिन बहुत अच्छी कविता. स्वागत फिर से आपका भइय्या.
फिर वो ही शमा होगी
मगर इक आवाज ना होगी , जब
नाशाद उस महफ़िल में ना होगा
आपको तो महफ़िल में रहना ही है नाशाद साहब, आपके बिना सच में महफ़िल अधूरी लगती है.
बेहद अच्छी रचना.
उम्दा. बहुत बढ़िया. शुक्रिया नरेश जी.
एक बहुत भावपूर्ण कविता |बधाई
आशा
शानदार रचना.
नरेशजी ,
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण कविता है हमेशा की तरह ....
शुभकामना आपको .......
एक टिप्पणी भेजें