अभी बाकी है
सूखे हुए उन फूलों में अभी भी खुशबूएं बाकी है
जिनमे रखे थे फूल वे किताबें खुलना अभी बाकी है
लौट आया सावन पर घटाओं का छा जाना अभी बाकी है
बरस रही है घटाएं पर तेरी जुल्फों का बिखरना अभी बाकी है
ढल गई है शाम पर तेरी यादों का आना अभी बाकी है
दिल लगा है डूबने पर अश्कों का आना अभी बाकी है
आ गई है बहारें मगर कलियों का चटकना अभी बाकी है
खिलने लगे है फूल मगर तेरा मुस्कुराना अभी बाकी है
मिल तो गई हैं राहें मगर मंजिल तक पहुंचना अभी बाकी है
आ गई तेरी गलीयाँ मगर तेरा दरीचा खुलना अभी बाकी है
थक गया है मुसाफिर मगर उम्मीदों का टूटना अभी बाकी है
ढलती जा रही है शाम मगर सूरज का डूबना अभी बाकी है
हो गए हैं ज़ख्म बहुत पुराने मगर उनका भरना अभी बाकी है
दिल में लगी है बहुत चोटें मगर उसका टूटना अभी बाकी है
तोड़ लिए हों लोगों ने नाते मगर तेरा साथ अभी बाकी है
आजमाए सभी दोस्त मगर रकीबों को आजमाना अभी बाकी है
सज संवर गईं हैं महफिलें मगर तेरा आना अभी बाकी है
पढ़ लिए सभी ने शेर मगर "नाशाद" का पढना अभी बाकी है
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010
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5 टिप्पणियां:
थक गया है मुसाफिर मगर उम्मीदों का टूटना अभी बाकी है
ढलती जा रही है शाम मगर सूरज का डूबना अभी बाकी है
हो गए हैं ज़ख्म बहुत पुराने मगर उनका भरना अभी बाकी है
दिल में लगी है बहुत चोटें मगर उसका टूटना अभी बाकी है
ये दोनों शेर दिल को छु गए. बहुत अच्छा लिखा है आपने. हर नई रचना में शब्दों और हकीकतों की गहराई बढ़ती जा रही है.
ढेर सारी शुभ-कामनाएं
किसे फूल दे दिया भाईसाहब आपने ! लेकिन इतना तय है कि आपके दिए फूलों की खुशबू कभी खत्म नहीं हो सकती जिस तरह आपकी रचनाओं की खुशबू लगातार बनी रहती है. बहुत ही निखरी हुई ग़ज़ल है.
क्या बात है . एक से एक शानदार शेर . वाह वाह वाह
ये ग़ज़ल तो और भी अच्छी लगी. कितना साफ़ लिखते हो जी आप. आप अल्फाज तो बड़े ही चंगे लेते हो . मैंने मेरे दारजी को भी आपकी ग़ज़ल पढ़ाई. उन्हें भी बहुत पसंद आई. हम सब की तरफ से बधाईयाँ.
सूखे हुए उन फूलों में अभी भी खुशबूएं बाकी है
जिनमे रखे थे फूल वे किताबें खुलना अभी बाकी है
हमें कभी ऐसा मौका नसीब नहीं हुआ की माशूका की किताब में गुलाब का फूल रखते. अगर ऐसा किया होता तो इस ग़ज़ल का मजा और भी बढ़ जाता. मुबारकबाद नाशाद साहब. नज़र ना लगे कभी आपको. शायरी लिख कर कागज़ पर काला टीका लगा लिया करो.
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