अब कुछ नहीं
जब बिखर गई सारी दुनिया
अब सिवाय पछतावे के कुछ नहीं
जब टूट गए सारे रिश्ते
अब सिवाय दूरीयों के कुछ नहीं
जब तिनके तिनके हुई उम्मीदें
अब सिवाय ख़्वाबों के कुछ नहीं
जब बिछुड़ गया कोई हमसे
अब सिवाय यादों के कुछ नहीं
जब दूर हो गई सभी आहटें
तो सिवाय सन्नाटों के कुछ नहीं
जब ओझल हो गई हैं मंजिलें
अब सिवाय सहरा के कुछ नहीं
जब जीवन से लम्बी हो गई राहें
अब सिवाय मोड़ों के कुछ नहीं
जब सूनी हो गई हैं सभी महफिलें
"नाशाद" सिवाय तनहाईयों के कुछ नहीं
गुरुवार, 10 जून 2010
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14 टिप्पणियां:
रिश्ते टूटने का दर्द और किसी के बिछुड़ने की पीड़ा बहुत अच्छी तरह से झलकी है इस ग़ज़ल में. बहुत सुन्दर लिखी है आपने.
एक बहुत ही दर्द से भरी हुई और एक एक शब्द में दर्द को झलकाती हुई ग़ज़ल. अत्यंत ही सुन्दर.
बहुत ही उम्दा --
जब जीवन से लम्बी हो गई राहें
अब सिवाय मोड़ों के कुछ नहीं
कुछ पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी है. जैसे =
जब तिनके तिनके हुई उम्मीदें
अब सिवाय ख़्वाबों के कुछ नहीं
हर दिल अजीज ग़ज़ल. बस पढ़ते ही मेरी आँखें खुद ब खुद भीग गई. जब आंसू टपका तब पता चला.
नाशाद साहब आपने सच लिख दिया है. जब बात पछतावे की हो तो एक एक बात तीर जैसी चुभती है. इस ग़ज़ल में जबरदस्त दर्द झलका है. आपका तो नाम ही नाशाद है.
इतना दर्द सहन नहीं होता. लेकिन फिर भी आपको बधाई क्यूंकि ग़ज़ल है तो लाजवाब.
नरेशजी; आप इतना मत रुलाया करें. आपके गीत बहुत अच्छे होते हैं. आप गीत या कवितायें ही लिखा करें. शुभ-कामनाएं तो दूंगी ही वर्ना आपने कोई गीत या कविता नहीं लिखी तो. अगला गीत ही होना चाहीय नहीं तो मैं नाराज़ हो जाऊंगी..
आपकी ग़ज़ल नि:संदेह बहुत ही शानदार ग़ज़ल है; दर्द तो बहुत है लेकिन फिर भी ये ज़िदगी का एक कड़वा सच है.
बेहतरीन ग़ज़ल .कुछ उदास सी. अल्फाज अपनी तरफ खींच लेते हैं.,
सॉरी नरेशजी; एक लम्बे अरसे के बाद आपके ब्लॉग पर आई हूँ. आपकी रचनाएँ फुरसत से पढूंगी. आज वाली तो रुला गई. कोई इस तरह से गम ना महसूस करे.
बहुत अच्छी. लेकिन कहीं कहीं दर्द कुछ ज्यादा हो गया. लेकिन क्या करें कम हो या ज्यादा दर्द तो दर्द ही होता है.
जब टूट गए सारे रिश्ते
अब सिवाय दूरीयों के कुछ नहीं **
यही सच्चाई है आज के ज़माने की. भैय्या आपने बहुत सच्ची बातें लिखी है. बहुत शानदार
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
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