मेरा गाँव कहीं खो गया है
कभी कभी मुझे लगता है जैसे
सुख तो मिला पर चैन खो गया है
दोस्त तो मिलें है हमें बहुत मगर
अपनापन जैसे कहीं खो गया है
हर ऐश-ओ-आराम मिल गए हमें
मगर मन जैसे कहीं भटक गया है
दौलत शोहरत बहुत मिली सभी को
इंसान का मोल लेकिन घट गया है
शहरों की चकाचोंध में ऐ नाशाद
मेरा गाँव कही जैसे खो सा गया है
मेरा गाँव कहीं जैसे खो सा गया है
3 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
सच ही अपनापन कहीं खो गया है ..अच्छी प्रस्तुति
सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत भाव
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