आवारा दोपहरें
याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें
तेरी तलाश में वो आवारा दोपहरें
हर मोड़ पर तेरी राह तकना
हर आहट में तेरे आने का धोखा होना
पर अगले ही पल दिल का बैठ जाना
याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें
वो बेमतलब तेरी गलीयों से गुज़रना
वो तेरे इक नज़ारे के लिए घंटों ठहरना
तेरी मुस्कान पर सारी थकान भुला देना
याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें
मुझे याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें
कभी ना भूलेगी वो आवारा दोपहरें
= नरेश नाशाद
3 टिप्पणियां:
वो बेमतलब तेरी गलियों से गुजरना...
इतना भी बेमतलब नहीं रहा होगा :)
बहुत अच्छी कविता...
बहुत सुन्दर ..बोहरा जी ..अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ..अब आना होता रहेगा ...
बहुत बहुत आभार सुमन, सिद्धार्थ, बस मेरा यही प्रयास रहता है कि दिल में जो भी ख़याल आता है उसे शब्दों में ढाल दूँ और किसी रचना का रूप दे दूँ.....आप सभी समय समय पर मार्गदर्शन करते रहिये...ताकि लेखनी में सुधार होता रहे....
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