बुधवार, 16 नवंबर 2011


आवारा दोपहरें 

याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें 
तेरी तलाश में वो आवारा दोपहरें 

हर मोड़ पर तेरी राह तकना 
हर आहट में तेरे आने का धोखा होना 
पर अगले ही पल दिल का बैठ जाना 
याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें 

वो बेमतलब तेरी गलीयों से गुज़रना
वो तेरे इक नज़ारे के लिए घंटों ठहरना 
तेरी मुस्कान पर सारी थकान भुला देना 
याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें 

मुझे याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें 
कभी ना भूलेगी वो आवारा दोपहरें 
= नरेश नाशाद 



3 टिप्‍पणियां:

Astrologer Sidharth ने कहा…

वो बेमतलब तेरी गलियों से गुजरना...


इतना भी बेमतलब नहीं रहा होगा :)


बहुत अच्‍छी कविता...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुन्दर ..बोहरा जी ..अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ..अब आना होता रहेगा ...

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

बहुत बहुत आभार सुमन, सिद्धार्थ, बस मेरा यही प्रयास रहता है कि दिल में जो भी ख़याल आता है उसे शब्दों में ढाल दूँ और किसी रचना का रूप दे दूँ.....आप सभी समय समय पर मार्गदर्शन करते रहिये...ताकि लेखनी में सुधार होता रहे....