मैं ढूंढता हूँ खुद को मगर मुझे मैं खुद ही नहीं मिलता
ये कैसा जहाँ है नाशाद जहाँ कोई खुद से ही नहीं मिलता
जिंदगी तो जी रहा हूँ मगर मैं जिंदगी से नहीं मिलता
सांसे चलती है मेरी मगर इनका कोई सबब नहीं मिलता
है रास्ते मेरे सामने मगर मंजिल का पता नहीं मिलता
जो बढे हैं आगे उनके क़दमों का कोई निशाँ नहीं मिलता
किस किस को अब पुकारूँ नाशाद कोई हमखयाल नहीं मिलता
मिल जाता खुदा में ही मगर आजकल तो खुदा भी नहीं मिलता
ये कैसा जहाँ है नाशाद जहाँ कोई खुद से ही नहीं मिलता
जिंदगी तो जी रहा हूँ मगर मैं जिंदगी से नहीं मिलता
सांसे चलती है मेरी मगर इनका कोई सबब नहीं मिलता
है रास्ते मेरे सामने मगर मंजिल का पता नहीं मिलता
जो बढे हैं आगे उनके क़दमों का कोई निशाँ नहीं मिलता
किस किस को अब पुकारूँ नाशाद कोई हमखयाल नहीं मिलता
मिल जाता खुदा में ही मगर आजकल तो खुदा भी नहीं मिलता
2 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा बयाँ किया खुद को तेने,तेरे से जुदा अनगिनत है जहान में,गिनते-गिनते थक जाएगा,लगे जो अपने सा ,ऐसी गिनती बस तूं बढाए जा |
बहुत उम्दा बयाँ किया खुद को तेने,तेरे से जुदा अनगिनत है जहान में,गिनते-गिनते थक जाएगा,लगे जो अपने सा ,ऐसी गिनती बस तूं बढाए जा |
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