मंगलवार, 7 जुलाई 2009

अपना गाँव

बरसों बाद अपने गाँव पहुँचा तो रात भर
बचपन के सारे गीत मुझे सुनाती रही हवा

गाँव उजड़ चुका था हर दोस्त बिछुड़ चुका था
फ़िर भी इन सभी का अहसास कराती रही हवा

हर दोपहर का साथी वो बरगद सूख चुका था
उसके सूखे ठूंठ से टकराती फिरती रही हवा

सावन रूठ चुका था तालाब सूख चुका था
कागज़ की कश्तियों को ख़ुद ही उडाती रही हवा

वो आँगन सूना था जहाँ दादा दादी का बसेरा था
नाम उनका मेरे संग पुकारती रही हवा

मैं अकेला ही खड़ा था बचपन के उजडे गाँव में
नाम मेरा पुकारती और मुझे ही ढूंढती रही हवा

उजडा गाँव फ़िर से बसाकर क्या नाशाद यहीं रहोगे
अपने सवाल के ज़वाब का इंतज़ार करती रही हवा

11 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उजडा गाँव फ़िर से बसाकर क्या नाशाद यहीं रहोगे
अपने सवाल के ज़वाब का इंतज़ार करती रही हवा

लाजवाब ............ बहुत उम्दा ........ स्वागत है आपका

Unknown ने कहा…

achha laga
bahut khoob !

Chandan Kumar Jha ने कहा…

उम्दा रचना.बहुत सुन्दर.

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

गुलमोहर का फूल

बेनामी ने कहा…

मैं अकेला ही खड़ा था बचपन के उजडे गाँव में
नाम मेरा पुकारती और मुझे ही ढूंढती रही हवा

ये पंक्तियां ज्यादा बेहतर लगीं...

पर आपके जडों की और झांकने के इस जज़्बे में काफ़ी कुछ बेहतर है..

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

shandar,jandar,damdar,manbhavan.narayan narayan

Dev ने कहा…

Bahut sundar rachana..really its awesome...

Regards..
DevSangeet

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

aap sabhi ka bahut bahut dhanyavaad. aapki pratikriyaen mujhe aur achcha likhne ki prerna degi.

Unknown ने कहा…

bahut Khoob, Mujhe mere gaon JODHPUR Ki yaad Dila gayi,

Wah.. Wah...

manjul ramdeo ने कहा…

bahut hi aachi kavita h.bachpan jise hum kabhi nahi bhool sakte jiski yaad samay samay par aati h

manjul ramdeo ने कहा…

bahut hi aachi kavita h.bachpan jise hum kabhi nahi bhool sakte jiski yaad samay samay par aati h