रविवार, 1 नवंबर 2009



यादें 
दबे पाँव आती है यादें 
कभी सपनों में 
कभी हवाओं में 
कभी घटाओं में 
कभी खुशबूओं में 
दबे  पाँव आती है यादें 
वे हसीं पल 
वे सुनहरे दिन 
वे  महफिलें 
वे रौनकें 
ले जाती है चुपके से हमें फिर उन दिनों में 
जब भी दबे पाँव आती है यादें 


अब जब कोई आरजू नहीं
अब जब कोई जुस्तजू नहीं 
अब जब कोई आस नहीं
अब  जब ओई मुराद नहीं 
फिर भी क्यों आती आती है यादें 
लेकर  वो ही फरियादें 
लेकर  वो ही वादें 
फिर लौट आओ 
फिर से इस जहाँ में चले आओ 
कोई तुम्हें बुलाता है
कोई आवाज़ लगता है 
कोई आंसू बहाता है 
कोई दुआओं में मांगता है 
कोई सपनों में बुलाता है 
कोई आराधना करता है 
कोई साधना करता है 


कोई कुछ कह रहा है 
कोई इंतज़ार कर रहा है 
हर रोज़ कहती है मुझे यादें 
दबे पांव आती है यादें 
अक्सर आती है यादें
यादें  किसी की यादें 
अब किस से करें फरियादें 
यादें पापा की यादें 
यादें पापा की यादें 

1 टिप्पणी:

manjul ramdeo ने कहा…

Helloji,
yade ki kavita bhi bahut aachi h tarrif ke liye words bhi kam padh rahe h.yeh bhi such h ki mummy ya papa m se ek koi bhi chala jaye to unki har pal, har khushi or jab apan dukh m ho jab bhi bahut yaad aate h..
me bhi es dukh se gujar chuki hu.
yade humesha dil m rahti h...