यादों की धूप
यादों की तेज धूप में उनकी जुल्फों के साये हैं
इन्ही जुल्फों के साये कई ज़माने बिताये हैं
जब भी बंद की है पलकें हमने उन्हें ही पाया है
आज भी इस कदर वो मेरे दिल में समाये हैं
जब भी उदास होकर हम छतों पर लेटे हैं
बादलों के बीच आकर वो हमेशा मुस्कुराए हैं
काली स्याह रातों में हम जब भी राह भटकाए हैं
उनकी रोशन यादों ने राहों के चिराग जलाये है
सावन के भीगे मौसम में जब जब भी बादल छाए हैं
"नाशाद" करके याद उन्हें हमने खूब आंसू बहाए हैं
सोमवार, 1 मार्च 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें