सोमवार, 15 मार्च 2010

हाथ की ये लकीरें 

कहीं लेकर नहीं जाती है  हमारी हाथ की ये लकीरें
किस्मत  नहीं संवारती  है  कभी हाथ की ये लकीरें

खुद ही खोज लो अपनी मंजिल  अगर पाना है
कभी राह  नहीं बतलाती है  हाथ की ये लकीरें

कभी ना समझ लेना इन्हें तुम अपनी तकदीरें
खुद ही आपस में उलझी है हाथ की ये लकीरें

सपनों  को तोडती है  इरादों  को झकझोरती है
भावनाओं से अक्सर खेलती है हाथ की ये लकीरें

ख़्वाबों में ही रहती है ये हकीकत नहीं बनती कभी
हाथ मलने को मजबूर करती है हाथ की ये लकीरें

ना कभी करना ऐतबार ना बांधना कभी तुम उम्मीदें
"नाशाद"  तुम्हें कर देगी  बरबाद हाथ की ये लकीरें   


कोई टिप्पणी नहीं: