रविवार, 21 मार्च 2010

मैं 

आँखें है कहीं खोई खोई
चेहरा है उलझा उलझा
जिंदगी का जैसे मसला कोई
आज तक हो नहीं सुलझा

दिल कहीं रहता है मेरा
धड़कन कहीं और है खोई
मंजिल है सामने खड़ी पर
रास्ता अभी तक कोई नहीं सूझा

खयाल एक तरफ जा रहे
इरादे चल दिए हैं और कहीं
कदम डगमग डगमग हो रहे
जीवन का हर एक तार है उलझा

जिस्म बिखरा है टुकड़े टुकड़े
जुड़ेगा कैसे ये ना जाने कोई
रातें होती है सभी की काली
यहाँ दिन भी है उलझा उलझा

आँखें है कहीं खोई खोई
चेहरा है उलझा उलझा 
जिंदगी का जैसे मसला कोई 
आज तक हो नहीं सुलझा