तुम्हें पहचान लेता हूँ
चन्दन सी महक है तुम्हारी
मैं दूर से ही जान लेता हूँ
कदमों की आहट से तुम्हारी
मैं तुम्हें पहचान लेता हूँ
तुमने किया है चुपके से याद मुझे
चमकते चाँद से जान लेता हूँ
मेरी तस्वीर को अकेले में छुआ है तुमने
अपनी बढती धड़कन से जान लेता हूँ
शरमा रही हो मन ही मन में
लचकती डालीयों से जान लेता हूँ
दबे होठों से लिया है तुमने मेरा नाम
हवाओं की खुशबू से जान लेता हूँ
मैंने तुमसे किया है प्यार
मैं तुम पर अपनी जान देता हूँ
खुदा ने तुम सा कोई और ना बनाया
मैं उसे अपना सलाम देता हूँ
हर आशिक अपनी महबूबा को दे तुम्हारा नाम
मैं आज ये ऐलान करता हूँ
मेरा दिल, मेरा प्यार , मेरी हर आरज़ू
आज मैं तुम्हारे नाम करता हूँ
चन्दन सी महक है तुम्हारी
मैं दूर से ही जान लेता हूँ
कदमों की आहट से तुम्हारी
मैं तुम्हें पहचान लेता हूँ
बुधवार, 31 मार्च 2010
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3 टिप्पणियां:
har aashiq de mahbooba ko tumhara naam. Bhaisaahab; aapne to in panktiyon me kamaal kar diya hai. Aapki bhasa ka saral aur satat pravaah sarahneey hai. Bahut sundar.
Jab main bhi kisi ko paehchan loongi to aise hi kahoongi use. Maine iska print our lekar apne paas rakh liya hai. Bahut shandaar hai ye kavita bhi.
कदमों की आहट से तुम्हारी
मैं तुम्हें पहचान लेता हूँ
bahut hi sunder kavita h
yeh lines bahut hi aachi lagi
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