ना जाने तुम कौन हो
ना जाने तुम कौन हो
जो इस तरह मेरे दिल में समां गए हो
जो इस तरह मेरी दुनिया बदल गए हो
ना जाने तुम कौन हो
जो मेरी साँसों को महका गए हो
जो मेरी आँखों में आकर बस गए हो
ना जाने तुम कौन हो
जो मेरे होठों को एक नई मुस्कान दे गए हो
जो मेरे गालों की लालिमा को और बढा गए हो
ना जाने तुम कौन हो
जो फागुन के रंगों को और भी रंगीन कर गए हो
जो पतझड़ में भी हर तरफ बहारें लेकर आये हो
ना जाने तुम कौन हो
जो मुझे अब हर तरफ नज़र आने लगे हो
जो मुझे ख्वाबों में भी आकर सताने लगे हो
ना जाने तुम कौन हो
जो अब मुझ को मुझ ही से छीन रहे हो
जो ना जाने किस बंधन में मुझे बाँध रहे हो
ना जाने तुम कौन हो
ना जाने तुम कौन हो
सोमवार, 29 मार्च 2010
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3 टिप्पणियां:
mujh ko mujh hi se cheen rahe ho naa jaane kis bandhan me baandh rahe ho.
Ye panktiyaaan zabardast prabhavshali hai. Premika ne kitni saral bhasa me apni masoomiyat ko darshaya hai. Nareshji aisa lagta hai ki aap purush aur stree dono ke swabhaav ko bahut gahraai se samajh lete ho. Dhnaywaad bhaiisaahab.
आपसे एक बात कहना चाहता हूँ नरेशजी. मेरे बड़े भैय्या ने प्रेम विवाह किया है . आपकी कविता की तरह उन्होंने हमारी भाभी को इसी तरह से चुरा लिया था. भाभी को कभी पता ही नहीं चला कि कब वो भैय्या को पसंद करने लगी है .आपकी कविता और भैय्या - भाभी की प्रेम सभी आपस में एक हो गए हैं . आज तो मज़ा आ गया नरेशजी .
आप जो फोटो लगाते हो ना हर गीत के साथ वो बहुत ही अच्छा होता है. वो सिर्फ फोटो नहीं होता . वो गीत कि लाइन के साथ जुड़ा होता है. ये गीत भी बहुत बहुत अच्छा है .
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