शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

तू और ........


तेरी मुस्कान से होती है  सुबहें 
तेरी खुशबु को तरसती है दोपहरें


तेरे नाम से महकती है शामें 
तेरी यादों से  सजती है रातें  


तेरे  क़दमों से चलता है ज़माना 
तेरी अदाओं से बदलते हैं मौसम 


तेरी हया से अदब है ज़माने में 
तेरी आँखों से नशा है पैमाने में 


तेरे आने से सजती है महफ़िलें 
तेरे इशारे से जलती है शम्में 


तेरी आवाज से  शायरी है जिंदा
तेरे होने से ही "नाशाद" है जिंदा 





5 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत खूब

Amitraghat ने कहा…

बढ़िया लिखा...."

Unknown ने कहा…

तेरे क़दमों से चलता है ज़माना
तेरी अदाओं से बदलते हैं मौसम

तेरी हया से अदब है ज़माने में
तेरी आँखों से नशा है पैमाने में

इतनी ज़बरदस्त शायरी तो मैंने आज तक नहीं पढी नरेशजी. मैं सच कह राही हूँ. बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है.

Unknown ने कहा…

तेरे नाम से महकती है शामें
तेरी यादों से सजती है शामें

साड्डे दिल को छु गया जी ये शेर तो. आप कमाल का लिखते हो. अब रोज मैंने आपका ब्लॉग देखना है

Unknown ने कहा…

तेरी हया से अदब है ज़माने में
तेरी आँखों से नशा है पैमाने में

तेरे आने से सजती है महफ़िलें
तेरे इशारे से जलती है शम्में
इन दो शेरों को पढने के बाद अब कुछ लिखने को बचता ही कहाँ है. आपने तो लखनवी तहजीब से हमें रूबरू करा दिया. अब मैं क्या लिखूँ. बस लिखते रहो भाईजान लिखते रहो.