आज मैं तुम पर दिल हार गया
चाहे मन की दुर्बलता कह लो
ना जाने दिल क्यूँ मजबूर हो गया
देखा तुम्हें तो मैं सब भूल गया
आज मैं तुम पर दिल हार गया
मैं आंसू हूँ तू आँचल है
मैं प्यासा हूँ तू सावन है
तुम चाहे मुझे दीवाना कह लो
या कोई पागल मस्ताना कह लो
अपना सब कुछ मैं छोड़ आया
मैं अपनी मंजिल तक भुला आया
आज मैं तुम पर दिल हर गया
मैं दिल हूँ तुम धड़कन हो
मैं प्रीत तुम तड़पन हो
तुम चाहे मुझे प्रेम रोगी कह लो
तुम चाहे मुझे मनो रोगी कह लो
तुम्हें याद करते करते सब भूल गया
मैं अपना नाम पता तक सब भूल गया
आज मैं तुम पर दिल हार गया
मैं जिस्म हूँ तुम जीवन हो
मैं चेहरा हूँ तुम दर्पण हो
तुम चाहे इसे पागलपन कह लो
या इश्क का मतवालापन कह लो
अपने नाम की जगह मैं तेरा नाम बता आया
अपने घर की जगह मैं तेरा पता बता आया
आज मैं तुम पर दिल हार गया
गली गली मैं भटका हूँ
पनघट पनघट मैं तरसा हूँ
तेरी कजरारी आंखों मैं भटका हूँ
अब तुम न मुझे ठुकराना
अब तुम न मुझे तरसाना
तुम चाहे इसे पागलपन कह लो
या तुम्हारे प्रेम का पूजन कह लो
तेरी मुस्कानों पर मैं अपना होश गवां आया
तेरी मासूम अदाओं पर मैं अपना सब कुछ गवां आया
आज मैं तुम पर दिल हार गया
आज मैं तुम पर दिल हार गया
23 टिप्पणियां:
भाईसाहब, नीरज की शैली की झलक दिखाई दी है आज. क्या बात है? क्या प्रेम प्रवाह है !!
ऐसा लगा जैसे कोई कवि-सम्मलेन चल रहा हो. मनभावन कविता.
बहुत खुबसूरत. एकदम धाराप्रवाह की कविता. कहीं कोई रुकावट का आभास नहीं हुआ. प्रशंसा योग्य.
अत्यंत ही सफल प्रयास एक सम्पूर्ण प्रवाह की कविता के लिए. नरेशजी आप पूरी तरह सफल रहे हैं इसमें.
दिल हारना तो कोई आपसे सीखे. अतिसुन्दर
ओह्हो !! कितनी सुन्दर है ये ! एक बार पढना शुरू किया तो पूरी की पूरी एक ही सांस में पढ़ गई. बहुत बधाई.
आपकी यह कविता बहुत ही उच्चकोटि की रचना लगी. इसमें एक अनोखा प्रवाह दृष्टिगोचर हुआ. नरेशजी ; आपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभ-कामना और इस श्रेष्ठ रचना के लिए साधुवाद.
अतिसुन्दर. बहुत ही सुन्दर!!!!!!
बहुत धन्यवाद
भैय्या, क्या लिखा है आपने
अच्छा प्रयास है. शब्दों को अच्छी तरह से पिरोया गया है. बधाई.
ईमानदारी से किया गया सफल प्रयास. सुन्दर रचना लगी.
कविता ठीक-ठाक है. जिस तरह ही तारीफ की गई है टिप्पणीयों में वैसी नहीं है. क्षमा कीजिएगा, आपको बुरा लगेगा लेकिन यह एक साधारण कविता से बढाकर नहीं है.
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
मनभावन कविता.
बेहद खुबसूरत कविता है. पढ़कर एक अलग तरह माहौल बन गया दिल में. कृष्णकान्तजी , आपकी टिप्पणी से कोई भी सहमत नहीं होगा. या तो आपको कविता की समझ नहीं है या फिर आपने जानबूझकर ऐसी टिप्पणी की है. ये नरेशजी का बड़प्पन है कि उन्होंने आपकी ऐसी टिप्पणी को भी मंज़ूर कर अपने ब्लॉग पर दिखाया है. आप एक बार फिर पढ़िए; हो सकता है आपको अपनी गलती का एहसास हो जाय.
What a poem Sir. Aapne bahut achcha kavita likha hai. Excellent.
हर एक लाइन अपनी ओर खींचती है. मुझे तो ये आपकी अब तक की सबसे अच्छी कविता लगी. अप्रतिम आणि अतिशय चांगली.
अच्छा लिखा है आपने
अच्छा लिखा है आपने
बहुत अच्छी कविता. सच में धड़कन बढ़ा गई. कृष्णकान्तजी आपकी टिप्पणी मुझे समझ नहीं आई. लगता है आपको कविता ही समझ में नहीं आई और आपने ऐसी टिप्पणी लिख दी. आप पुन: विचार किजीये.
सुन्दर रचना. शब्दों के मोती और आपकी शैली की माला. नरेशजी; एक बेहतरीन कविता बन गई है.
अतिसुन्दर. प्रशंसनीय कविता. नरेशजी; बहुत पसंद आई. धन्यवाद
आप बहुत अच्छा मनमोहक लिखते है हो सके तो देशभक्ति का जवार पैदा कर देने वाले विषयों पर जरूर लिखें बैसे हमने अभी आपको जयादा पढ़ा नहीं है अगर कुछ गलत लिख दिया तो क्षमा चाहेंगे।
आपकी टिपणी का जबाब हरमने लिक दिया है अपने बलाग पर आप कुछ बताना चाहें तो दिल से आपका स्वागत है
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