बुधवार, 12 मई 2010

आज मैं तुम पर दिल हार गया 














चाहे तुम मेरी चंचलता कह लो
चाहे मन की दुर्बलता कह लो
ना जाने दिल क्यूँ मजबूर हो गया
देखा तुम्हें तो मैं सब भूल गया
आज मैं तुम पर दिल हार गया 
मैं आंसू हूँ तू आँचल है
मैं प्यासा हूँ तू सावन है
तुम चाहे मुझे दीवाना कह लो
या कोई पागल मस्ताना कह लो
अपना सब कुछ मैं छोड़ आया
मैं अपनी मंजिल तक भुला आया
आज मैं तुम पर दिल हर गया

मैं दिल हूँ तुम धड़कन हो
मैं प्रीत तुम तड़पन हो
तुम चाहे मुझे प्रेम रोगी कह लो
तुम चाहे मुझे मनो रोगी कह लो
तुम्हें याद करते करते सब भूल गया
मैं अपना नाम पता तक सब भूल गया
आज मैं तुम पर दिल हार गया







मैं जिस्म हूँ तुम जीवन हो
मैं चेहरा हूँ तुम दर्पण हो
तुम चाहे इसे पागलपन कह लो
या इश्क का मतवालापन कह लो
अपने नाम की जगह मैं तेरा नाम बता आया
अपने घर की जगह मैं तेरा पता बता आया
आज मैं तुम पर दिल हार गया

गली गली मैं भटका हूँ
पनघट पनघट मैं तरसा हूँ
तेरी कजरारी आंखों मैं भटका हूँ
अब तुम न मुझे ठुकराना
अब तुम न मुझे तरसाना
तुम चाहे इसे पागलपन कह लो
या तुम्हारे प्रेम का पूजन कह लो
तेरी मुस्कानों पर मैं अपना होश गवां आया
तेरी मासूम अदाओं पर मैं अपना सब कुछ गवां आया
आज मैं तुम पर दिल हार गया
आज मैं तुम पर दिल हार गया



23 टिप्‍पणियां:

V Singh ने कहा…

भाईसाहब, नीरज की शैली की झलक दिखाई दी है आज. क्या बात है? क्या प्रेम प्रवाह है !!

Unknown ने कहा…

ऐसा लगा जैसे कोई कवि-सम्मलेन चल रहा हो. मनभावन कविता.

Unknown ने कहा…

बहुत खुबसूरत. एकदम धाराप्रवाह की कविता. कहीं कोई रुकावट का आभास नहीं हुआ. प्रशंसा योग्य.

Unknown ने कहा…

अत्यंत ही सफल प्रयास एक सम्पूर्ण प्रवाह की कविता के लिए. नरेशजी आप पूरी तरह सफल रहे हैं इसमें.

Unknown ने कहा…

दिल हारना तो कोई आपसे सीखे. अतिसुन्दर

Unknown ने कहा…

ओह्हो !! कितनी सुन्दर है ये ! एक बार पढना शुरू किया तो पूरी की पूरी एक ही सांस में पढ़ गई. बहुत बधाई.

Rampyare Trivedi "Nirmohi" ने कहा…

आपकी यह कविता बहुत ही उच्चकोटि की रचना लगी. इसमें एक अनोखा प्रवाह दृष्टिगोचर हुआ. नरेशजी ; आपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभ-कामना और इस श्रेष्ठ रचना के लिए साधुवाद.

Kalpawriksh Kumar ने कहा…

अतिसुन्दर. बहुत ही सुन्दर!!!!!!

Unknown ने कहा…

बहुत धन्यवाद
भैय्या, क्या लिखा है आपने

Unknown ने कहा…

अच्छा प्रयास है. शब्दों को अच्छी तरह से पिरोया गया है. बधाई.

Unknown ने कहा…

ईमानदारी से किया गया सफल प्रयास. सुन्दर रचना लगी.

Krishnadev Kant Rai ने कहा…

कविता ठीक-ठाक है. जिस तरह ही तारीफ की गई है टिप्पणीयों में वैसी नहीं है. क्षमा कीजिएगा, आपको बुरा लगेगा लेकिन यह एक साधारण कविता से बढाकर नहीं है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

मनभावन कविता.

Unknown ने कहा…

बेहद खुबसूरत कविता है. पढ़कर एक अलग तरह माहौल बन गया दिल में. कृष्णकान्तजी , आपकी टिप्पणी से कोई भी सहमत नहीं होगा. या तो आपको कविता की समझ नहीं है या फिर आपने जानबूझकर ऐसी टिप्पणी की है. ये नरेशजी का बड़प्पन है कि उन्होंने आपकी ऐसी टिप्पणी को भी मंज़ूर कर अपने ब्लॉग पर दिखाया है. आप एक बार फिर पढ़िए; हो सकता है आपको अपनी गलती का एहसास हो जाय.

Unknown ने कहा…

What a poem Sir. Aapne bahut achcha kavita likha hai. Excellent.

Unknown ने कहा…

हर एक लाइन अपनी ओर खींचती है. मुझे तो ये आपकी अब तक की सबसे अच्छी कविता लगी. अप्रतिम आणि अतिशय चांगली.

kavi surendra dube ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने

kavi surendra dube ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छी कविता. सच में धड़कन बढ़ा गई. कृष्णकान्तजी आपकी टिप्पणी मुझे समझ नहीं आई. लगता है आपको कविता ही समझ में नहीं आई और आपने ऐसी टिप्पणी लिख दी. आप पुन: विचार किजीये.

Unknown ने कहा…

सुन्दर रचना. शब्दों के मोती और आपकी शैली की माला. नरेशजी; एक बेहतरीन कविता बन गई है.

Unknown ने कहा…

अतिसुन्दर. प्रशंसनीय कविता. नरेशजी; बहुत पसंद आई. धन्यवाद

Unknown ने कहा…

आप बहुत अच्छा मनमोहक लिखते है हो सके तो देशभक्ति का जवार पैदा कर देने वाले विषयों पर जरूर लिखें बैसे हमने अभी आपको जयादा पढ़ा नहीं है अगर कुछ गलत लिख दिया तो क्षमा चाहेंगे।
आपकी टिपणी का जबाब हरमने लिक दिया है अपने बलाग पर आप कुछ बताना चाहें तो दिल से आपका स्वागत है