मंगलवार, 18 मई 2010



वो

अक्सर सबसे छुपकर
वो मेरी तस्वीर बनाता क्यों है
कागजों पर लिखकर मेरा नाम
वो ज़माने से छुपाता क्यों है

देखकर सूरत मेरी
वो हर बार मुस्कुराता क्यों है
मेरे वापस मुस्कुराने पर
वो ख़ुद फ़िर शर्माता क्यों है

जब अपना दिल मुझे दे दिया तो
वो ज़माने से घबराता क्यों है
जब मैंने खुदा से उसे मांग लिया तो
वो दुआओं में मुझे मांगता क्यों है

इश्क में नहीं मिला करते गुलाब तो
वो काँटों से घबराता क्यों है
रोज़ मुझसे मिलता है तो फ़िर
वो मेरे ख्वाबों में आता क्यों है

उसके दिल में है तस्वीर मेरी तो
वो उसे मुझसे छुपाता क्यों है
प्यार जब उसने मुझसे किया है तो
वो ज़माने को बताता क्यों है

10 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

waah ustaad waaah...

PUKHRAJ JANGID पुखराज जाँगिड ने कहा…

नरेश बोहरा जी, आपके ब्लाग का नाम पसंद आया. बेहद ही क्रिएटिव. प्रेम साझा चाहता है. विचारों का, ख्यालों का और आदतों का भी. वैसे भी यह परिपक्वता में किया जाने वाला कोई काम तो है नहीं कि सबकुछ सोच-समझकर ही किया जाए. वह चाहें कुछ भी नहीं लेकिन प्रेम हो ही यह कोई जरुरी तो नहीं. दरअसल यह स्वछंदता से, एक उम्र से जुड़ा यूटोपिया ही अधिक ठरता है. ऐसा मुझे लगता है. जो धीरे-धीरे यथार्थ रूप लेता जाता है. और मजबूत होता जाता है. इसीलिए वह प्रारंभ में कागजों पर नाम लिखकर मिटा देता है.मुकुराहत का जवाब सेने पर शर्मा जाता है. क्योंकि उसे डर है कि कहीं खुदा उसे उसे छीन ला ले. चूँकि वह ज़माने की हकीकत से वाकिफ नहीं है. डराने पर डर जाता है. इसीलिए वह काँटों से घबराता है. आकी अंतिम पंक्तियाँ पहले कास्वाभाविक अंत नहीं लगती. या मेरे समझने में कोई भूल हुई हो? आपका पुखराज जांगिड़.

Unknown ने कहा…

क्या खूब लिखा है नरेशजी! बहुत ही खूब. क्या शेर है ये -
उसके दिल में है तस्वीर मेरी तो वो उसे मुझसे छुपाता क्यों है
प्यार जब उसने मुझसे किया है तो वो ज़माने को बताता क्यों है

Unknown ने कहा…

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल. ढेर सारी बधाईयाँ

Sunanda Sharma ने कहा…

मौहब्बत की हकीकत बयान करता है ये शेर -
इश्क में नहीं मिला करते गुलाब तो वो काँटों से घबराता क्यों है
रोज़ मुझसे मिलता है तो फ़िर वो मेरे ख्वाबों में आता क्यों है

शुभकामना नरेशजी.

नरेश चन्द्र बोहरा ने कहा…

आप सही भी हो सकते हैं पुखराज जी .यह जरुरी नहीं कि लिख हुआ सब ठीक हो. अगर आप अपनी टिप्पणी में कमी को उजागर नहीं करोगे तो मुझे पता कैसे चलेगा. आपकी टिप्पणीयों का स्वागत है. गहराई से सोचने पर मुझे भी ये पंक्तियाँ कुछ अधूरी लग रही है.

Dayanad Tripathi "Pushp" ने कहा…

नरेशजी; आप दिल से लिखते हैं. आपकी समस्त रचनाओं से यह साफ़ उजागर होता है. थोड़ी कमी नजर आती है कभी कभी. लेकिन यह कमी भी अपने आप दूर हो जाएगी. यह कमी है भाषा की. आप हिंदी और उर्दू का जो मिलान करते हो; उससे यह समस्या पैसा होती है. लेकिन आप इसे अन्यथा नहीं लें कभी कभी ऐसी कमीयां एक अलग तरह की शैली का रूप ले लेती है जो अच्छी लगती है. हमरी तरफ से आपको ढेर सारी बधाईयाँ और शुभकामनाएं.

Unknown ने कहा…

बहुत ही खूब.
जब अपना दिल मुझे दे दिया तो
वो ज़माने से घबराता क्यों है

Unknown ने कहा…

Once again an excellent creation. Mazaa aa gaya.बेहद पसंद आई. आपकी खासियत "वो" और "किसी" शब्दों को बार बार यूज करने की बहुत अच्छी लगती है.

Shakeel Jaunpuri ने कहा…

बेहतरीन ग़ज़ल. जैसा कि आप इन दिनों अपनी पुरानी गज़लें फिर से पोस्ट कर रहे हैं; मैंने पुरानी वाली ग़ज़लें भी पढ़ी. नाशाद साहब मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपकी शायरी में गज़ब का निखार आ रहा है.