बुधवार, 2 जून 2010
तुम यकीन करोगी !
तुम यकीन करोगी !
क्या तुम यकीन करोगी !!
तुम्हारे लिए,
मैं हर रात एक नया ख्वाब देखता था
हर दरख़्त पर तुम्हारा नाम लिखता था
तुम्हारी किताबों में फूल रखता था
तुम्हारे नाम की पतंग उड़ाता था
तुम्हे पाने की कल्पना करता था
तेरे ही ख्यालों में खोया रहता था
रेत पर अपनी किस्मत लिखता था
तुम्हें ख़त हर रोज़ एक लिखता और
फिर उन्हें खुद ही पढ़ा करता था
सितारों में तुम्हारी तस्वीर तलाशता था
हर मोड़ पर तुम्हारी राह तकता था
खुद के साये को तेरा साथ समझता था
तेरी तस्वीर से हर दिल की बात कहता था
हर सांस तुम्हारे नाम की लेता था
क्योंकि मैं तुमसे बेपनाह मौहब्बत करता था
तुमसे बेपनाह मौहब्बत करता था
उस वक्त भी नहीं किया
अब क्या करोगी
क्या तुम यकीन करोगी ?
तुम यकीन नहीं करोगी
कभी नहीं करोगी
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13 टिप्पणियां:
बिलकुल सही फरमाया अपने
waah sirji kisiko ho na ho hame yakeen karenge...
आभार,बेहद उम्दा रचना !
बेहद सुन्दर. रेत पर अपनी किस्मत लिखता था. इस पंक्ति ने काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया.
अच्छी रचना. नरेशजी; आपके सभी प्रयोग सफल रहते हैं. अगर मैं गलत नहीं हूँ तो यह हिंदी नज़्म भी बहुत अच्छी बन पड़ी है.
सुन्दर वर्णन है प्रेम का. रेत पर अपनी किस्मत लिखता था - यह पंक्ति बहुत अच्छी लगी.
रेत पर अपनी किस्मत लिखता था. बहुत अच्छी लगी यह बात.पता था कि तुम नहीं मिलोगे लेकिन मैं तुमसे मौहब्बत करता था. बेहद ही शानदार रचना है.
प्रेम पर सुन्दर रचना ,,,बहुत खूब ,कुछ पंक्तिया लाजवाब / प्रेम कुछ यहाँ भी है सुझाव दे
सुन्दर है. तुम्हारी किताबों में फूल रखता था. कॉलेज के दिन याद आ गए. लेकिन सबसे अच्छी पंक्ति है - रेत पर अपनी किस्मत लिखता था.
कुछ नया तजुर्बा करने की आपकी कोशिश रंग ले आई है. बहुत अच्छा लगा. रेत पट अपनी किस्मत लिखने का आपका अंदाज़ बड़ा पसंद आया.
वाह !! एक बहुत अलग तरह का दर्द निकलकर आया है इस में. बहुत बढ़िया. मैं रेत पर अपनी किस्मत लिखता था. ये लाइन सबकी तरह मुझे भी बेहद पसंद आई.
कुछ पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी है. जैसे - रेत पर अपनी किस्मत लिखता था और अपने साये को तेरा साथ समझता था. बहुत अच्छी रचना.
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
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