गुरुवार, 1 जुलाई 2010
जब से तुम से इश्क हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
हर गली में मेरा चर्चा हुआ है
जब भी कहीं से गुजरता हूँ मैं
लिए तस्वीर तेरी हाथ में
कहते हैं सभी लो फिर रांझा आया है
खुद से ही करता हूँ बातें
तारे गिन काटता हूँ रातें
अब से मेरा एक एक पल
बस तेरे ही नाम हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
तुझ को ही खुदा मानता हूँ
तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ
तेरे आगे करता हूँ सजदा
तेरे घर के आगे सर झुका हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
दिल ये कहे तुझे कहीं ले जाऊं
चाँद सितारों की सैर कराऊं
लेकिन कैसे कहूँ दिल की बातें
ना जाने कब होगी ऐसी मुलाकातें
अब दिल तेरे ही सपनों में खोया हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
हर दिन सूना सूना लगता था
हर घडी उदास मैं रहता था
जब तुम ना थे तो मैं था अधुरा
तुझसे ही मेरा जीवन पूरा हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
कसम है तुम्हें ना मुझे ठुकराना
मेरे सिवा किसे भी ना अपनाना
सुन लो जानम तुम मेरी ये बात
सारा जग छोड़ ये जोगी तेरे संग हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
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33 टिप्पणियां:
nice
ये हुई ना बात!! आपके ऐसे ही गीतों का इंतज़ार रहता है नरेशजी. इसमें पंजाब की खुशबु के साथ साथ सूफियाना टच भी है. मैं सूफी संगीत के बारे में ज्यादा नहीं जानती हूँ लेकिन शायद ये गीत थोडा बहुत सूफी भावों को भी लिए हुए हैं ==
तुझ को ही खुदा मानता हूँ
तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ
तेरे आगे करता हूँ सजदा
तेरे घर के आगे सर झुका हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
रांझे की तस्वीर देखकर ही दिल खुश हो गया. उस पर खुद-ब-खुद गुनगुनाता हुआ आपका ये गीत सोने पे सुहागा हो गया. बहुत बधाईयाँ.
आज ये पहला अवसर है जब मैंने आपके ब्लॉग की रचनाएँ पढ़ी है. आप सरल भाषा में लिखते हैं लेकिन भाषा के सरल होने के बावजूद भी हर रचना काफी प्रभावशाली होती है. जिन दो पंक्तियों ने दिल को जीत लिया है वो है -
तुझ को ही खुदा मानता हूँ
तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ
दिल से बधाई नरेशजी.
तुझ को ही खुदा मानता हूँ
तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ
तेरे आगे करता हूँ सजदा
तेरे घर के आगे सर झुका हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
जवाब नहीं आपका नरेशजी. यह हिस्सा तो इतना अच्छा लगा है की मैं लगातार पढ़े जा रही हूँ.
क्या लिख डाला है आपने अज तो - तुझ को ही खुदा मानता हूँ ; तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ. बस ऐसा इश्क हो जाए तो फिर रब ही मिल जाये.
नरेशजी; ये तो बड़े ही कमाल का गीत है. एक बार पुन: वो ही प्रवाह और सुन्दर शब्दों का मेल. बहुत खूब.
बहुत खूब. बहुत सुन्दर. बहुत शानदार.
सारा जग छोड़ ये जोगी तेरे संग हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
यही सच्चा इश्क है. सब कुछ छोड़ जोगी बन जाना और महबूब को रब मान लेना. कितना सुन्दर है ये गीत!
सुन्दर रचना. गुनगुनाने लायक रचना.
ओये होये! अज्ज तो खुश कर दित्ता नरेशजी. वड्डा सोणा गाणा लिख्खा है जी. तुझ को खुदा मानता हूँ. तुझ से तुझ ही को माँगता हूँ. रब ऐडा ही यार मिला दे. बद गल्ल बण जावेगी. ok now I am serious. मेरी अपना ये मानना है की ये आपका अब तक का सबसे अच्छा गीत है., ग़ज़लों की बात नहीं कर रही हूँ. सिर्फ गीतों में. आपको बहुत शुभ-कामनाएं हमारे पूरे परिवार की तरफ से. आपके ब्लॉग से हमें हमारे वतन की सैर भी हो जाति है. आप फोटोज बहुत अच्छी लगते हो. आपका गीता / कविता के सब्जेक्ट के हिसाब से सेलेक्शन एकदम परफेक्ट रहता है.
जनाब नाशाद साहब इस तरह से गीत लिखते लिखते कहीं ग़ज़लें लिखना भूल नहीं जाना. आपकी ग़ज़लें आपकी पहचान है. लेकिन ये आपका गीत भी किसी ग़ज़ल से कम नहीं है. एक टिप्पणी में सूफियाना अंदाज का गीत भी कहा गया है. जी हाँ. कहीं कहीं ऐसा महसूस होता है. तुझे खुदा मांगता हूँ. बहुत लाजवाब है.
तुझसे ही मेरा जीवन पूरा हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
ये बिलकुल सच है. जीवन ऐसे ही पूरा माना जाता है. बहुत सुन्दर रचना है.
badhiyaa
आपका यह गीत मेरे लिए आज बहुत मददगार रहा. मेरे पति इन दिनों कनाडा के दौरे पर है. वो इतने व्यस्त थे की पूरे सात दिन बाद आज हमारी बात हुई. मैंने आपके गीत की थोड़ी लाईनें क्या सूना दी वो तो फोन पर ही भावुक हो उठे और अपनी तरफ से मुझे आपको बधाई देने के लिए कहा है. उन्होंने कहा कि इस गीत ने सात दिनों की दुरी को सात जन्मों के रिश्ते को और भी मजबूत कर दिया है. नरेशजी; बस आप ऐसे ही लिखते रहो भगवान से सच्चे दिल से प्रार्थना करती हूँ.
भाईसा; बारिशों का मौसम कुछ ज्यादा ही रास आ रहा है आपको!! एक के बाद एक रूमानी और शानदार गीत रचे जा रहे हैं. बहुत सुन्दर गीत. बहुत बहुत बधाई.
ये गाना बहुत अच्छा है. कांग्रेट्स
.अत्यंत ही सुन्दर और सफल प्रयास
बेहद सुन्दर गीत.अब क्या लिखूं. गुरु इंदरजीत singhji ने सही लिखा कि आपके पंजाब से बहुत अनुसरणकर्ता है. मैंने भी आज ही नोट किया. मैं भी यह जानना चाहती हूँ कि क्या कोई राज़ है या मात्र संयोग है ? जवाब जरुर देना.
तुझ को ही खुदा मानता हूँ
तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ
तेरे आगे करता हूँ सजदा
तेरे घर के आगे सर झुका हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
मनभावन और बड़ा ही शीतलता का अहसास लिए हुए गीत. शुभ-कामनाएं
बहुत अच्छा. बहुत बधाई,
अथाह प्रेम लिए एक शानदार कविता. नरेशजी आपको बहुत बहुत बधाई.
अब क्या तारीफ करूँ. आपका तो हर गीता हर ग़ज़ल इतनी अच्छी होती है कि बस पढ़ते रहने की ही इच्छा रहती है.
क्या लिखा है भाईसाहब!!!!!! अतिसुन्दर.
बड़ा सुन्दर प्रेम-गीत. कोई धुन बना दे तो और भी सुन्दर हो जाएगा.
""तुझ को ही खुदा मानता हूँ
तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ
तेरे आगे करता हूँ सजदा
तेरे घर के आगे सर झुका हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है""
यह छंद पूरे गीत पर भारी हैं. पूरे गीत की जान है.
आपने शानदार रचना लिखी है। फिल्म लैला- मंजनू का कुछ दृश्य भी याद आया।
मनभावन ,सुंदर रचना
तुझ को ही खुदा मानता हूँ
तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ
Wonderful creation !
वाह! नाशाद शाद हैं आजकल....
भई हम तो पहले ही कहते थे!
बेहद रोमानी......
जब से तुमसे इश्क हुआ है!!!!
तुझ को ही खुदा मानता हूँ
तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ
तेरे आगे करता हूँ सजदा
तेरे घर के आगे सर झुका हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
bahut hi aachi line h waise pura geet bahut sunder h congrates...
बस ऐसा इश्क हो जाए तो फिर रब ही मिल जाये.
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
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