कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
क्यूँ कोई अपना भी बेगाना सा लगता है
क्यूँ हर कोई दिल तोड़ने की बात करता है
क्यूँ हर कोई खुद को अलग समझता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
क्यूँ अब रिश्तों गहराईयाँ कम है
क्यूँ अब इंसानों में मौहब्बतें कम है
क्यूँ अब हरसू रंजिशों का मौसम है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
क्यूँ अब हर दिन एक बोझ है
क्यूँ हर रात एक काला साया है
क्यूँ खुद से ही जुदा अब अपना साया है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
अब जब कोई आरज़ू बाकी नहीं
अब जब कोई रौशनी नज़र आती नहीं
तो क्यूँ ये निगाहें कुछ तलाशती हैं
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
हर तरफ जब रास्ते ही रास्ते हैं
जब कोई मंजिल नज़र नहीं आती
तो बेवजह क्यूँ ये राहें चल रही है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
हर नाता अब झूठा क्यूँ लगता है
हर धागा अब कच्चा क्यूँ लगता है
हर सांस अब बोझ क्यूँ लगती है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
नाशाद ये दिल अब डूबता जाता है
देखते हैं कोई मसीहा कब नजर आता है
हर मंज़र खौफज़दा नज़र आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
शनिवार, 16 अक्तूबर 2010
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12 टिप्पणियां:
नाशाद साहब इस तरह के खयालात दिल को अक्सर हिला देते हैं. बहुत सोचने के लिए मज़बूर कर देते हैं. ज़माना बहुत बदल गया है. आपने दिल के दर्द को अल्फाजों में बखूबी उतरा है.
आज वो देख रहे हैं जो सुना करते थे.
वाह नाशाद भाई जान वाह. इतना दर्द कहाँ से लाते हो. मैंने पहले भी कई दफा आपको पढ़ा है लेकिन आज लिखें को मज़बूर हो गया हूँ की इतना दर्द किस तरह दिल में भर जाता है आपके!!!
मेरी दुआ है खुदा से की आपको सलामत रखे. आपकी कलम यूहीं चलती रहे,
इसे पढने के बाद कुछ लिखने को दिल नहीं हो रहा. पता नहीं फिर भी कुछ सोचने को दिल चाहता है.
बस दो शब्द ही लिख पाऊंगा -- बहुत खूब.
सही कहा है आपने नरेश भइय्या --- अक्सर ऐसा लगता है की आजकल रिश्तों के धागे बहुत ही कच्चे हो गए हैं. बहुत सुंदर रचना.
साँसें बोझ क्यूँ लगती है ------ नरेशजी, आपने क्या लिखा है,,, हर तरफ यही आलम है आजकल.
........नरेशजी, आपने क्या लिखा
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
सुंदर प्रस्तुति....
आपको
दशहरा पर शुभकामनाएँ ..
वाह! बहुत बढ़िया.
aaj kal sabhi rishte kachhe dhage ki tarah hi h jine sahej pana muskil hota ja raha h....
hamesha ki tarah picture bahut aachi h.....
संजय जी दिल से आभार. आपकी लगातार टिप्पणीयों ने मुझे बहुत ख़ुशी प्रदान की है.
हाँ सिकंदर साहब, ज़माना सचमुच बहुत ही बदल गया है. आज हमें हरसू वो ही दिखाई देता है जो कभी हमने अपने बुजुर्गों से सुना था. ना जाने ऐसा क्यूँ हुआ है?
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