कुछ छोटे छोटे सफ़हे --
और कुछ नहीं था अपना मेरे दिल के सिवा
तेरे इश्क में नाशाद वो भी हार गया
तेरी इक नजर क्या पड़ी मुझ पर
मैं तुझ पर आज सब कुछ हार गया
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जब वो सामने होते हैं
हर मंज़र बहार होता है
जब वो करीब होते हैं
तो दिल को करार होता है
यूहीं होता है नाशाद जब
किसी को किसी से प्यार होता है
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घटाओं में जिसका चेहरा छिपा है
हवाओं में जिसकी महक घुली है
बहारों में जिसकी मस्ती छाई है
वो मौहब्बत किसी में नज़र आई है
जिसे देखा था अक्सर ख़्वाबों में
वो सूरत आज सामने नज़र आई है
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यूँ सामने आकर ना
तुम मिला करो हमसे
हमें हया आ जाती है
बस ख़्वाबों में आया करो
जब हम नींद में सोये रहते हैं
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मैंने उनमे क्या देखा
बस अपना मुकद्दर देखा
मैंने उनकी आँखों में
प्यार का समंदर देखा
उनकी झील सी आँखों में
मैंने देखा और दिल डूब गया
जंगल सी उनकी आँखों में
नाशाद जैसे राह ही भूल गया
= नरेश नाशाद
1 टिप्पणी:
सोचा की बेहतरीन पंक्तियाँ चुन के तारीफ करून ... मगर पूरी नज़्म ही शानदार है ...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
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