शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

दरख़्त पर तेरा नाम 

उस दरख़्त पर मैंने तेरा नाम लिखा था 
जो अब शायद सुख चुका है 
नहीं आते उस पर अब हरे पत्ते 
नहीं बैठते उस पर अब परिंदे
नहीं आता कोई अब उसकी छाँव के लिए
तुम भी नहीं देखते उस सूखे दरख़्त को 
एक  नाकामयाब मौहब्बत के निशानी को 
नाशाद मैं आज भी वहीँ खडा हूँ 
वो सूखा दरख़्त भी वहीँ खडा है 
लेकिन उस पर तुम्हारा नाम आज भी खुदा है
मैं हर रोज पढता हूँ तुम्हारे नाम को
मैं हर रोज देखता हूँ उस दरख़्त को 
जो शायद एकमात्र निशानी है हमारी मौहब्बत की 
वो दरख़्त जिस पर मैंने तुम्हारा नाम लिखा था 
तेरे नाम के साथ अपना मुकद्दर भी लिख दिया था  


12 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

bahut sundar !

sunildutta ने कहा…

बहुत ही सुंदर

Pallavi Vikram Bohra ने कहा…

Behad umdaa nazm.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूब ...यादें पीछा नहीं छोडतीं

दीपक अवस्थी " सुकेतु" ने कहा…

बेहतरीन नज़्म नाशाद जी....बहुत अच्छा लिखा है आपने.दरख़्त, नाम, पढ़कर ही मन रोमांचित हो उठा.

Unknown ने कहा…

अति-सुन्दर.. यादों का काफिला एक बार फिर हमारे दर तक आ पहुंचा.

Abdul Waheed "Soz" ने कहा…

उम्मीद है अब ब्लॉग फिर से नयी नए रचनाएँ से सु-सज्जित हो जाएगा. इस नज़्म से तो यह संकते मिल रहा है. बेहद उम्दा. शुभ-कामनाएं

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर नज़्म....नरेश जी अब गुम ना हो जाना .....एक आदत हो गई है आपके ब्लॉग को देखने की...

Unknown ने कहा…

बढ़िया है भाई.....बड़ी अच्छी तरह से यादें संजोई है आपने इस नज़्म में....दरख़्त पर लिखे नाम से एक ज़मान याद आ जाता है

Unknown ने कहा…

बढ़िया है भाई.....बड़ी अच्छी तरह से यादें संजोई है आपने इस नज़्म में....दरख़्त पर लिखे नाम से एक ज़मान याद आ जाता है

Unknown ने कहा…

Sundar nazam. Bahut achchi prastuti.

Unknown ने कहा…

नाशाद मैं आज भी वहीँ खडा हूँ
वो सूखा दरख़्त भी वहीँ खडा है
लेकिन उस पर तुम्हारा नाम आज भी खुदा है
Behatareen panktiyaan, Waah Nashaad sahab