दरख़्त पर तेरा नाम
उस दरख़्त पर मैंने तेरा नाम लिखा था
जो अब शायद सुख चुका है
नहीं आते उस पर अब हरे पत्ते
नहीं बैठते उस पर अब परिंदे
नहीं आता कोई अब उसकी छाँव के लिए
तुम भी नहीं देखते उस सूखे दरख़्त को
एक नाकामयाब मौहब्बत के निशानी को
नाशाद मैं आज भी वहीँ खडा हूँ
वो सूखा दरख़्त भी वहीँ खडा है
लेकिन उस पर तुम्हारा नाम आज भी खुदा है
मैं हर रोज पढता हूँ तुम्हारे नाम को
मैं हर रोज देखता हूँ उस दरख़्त को
जो शायद एकमात्र निशानी है हमारी मौहब्बत की
वो दरख़्त जिस पर मैंने तुम्हारा नाम लिखा था
तेरे नाम के साथ अपना मुकद्दर भी लिख दिया था
12 टिप्पणियां:
bahut sundar !
बहुत ही सुंदर
Behad umdaa nazm.
बहुत खूब ...यादें पीछा नहीं छोडतीं
बेहतरीन नज़्म नाशाद जी....बहुत अच्छा लिखा है आपने.दरख़्त, नाम, पढ़कर ही मन रोमांचित हो उठा.
अति-सुन्दर.. यादों का काफिला एक बार फिर हमारे दर तक आ पहुंचा.
उम्मीद है अब ब्लॉग फिर से नयी नए रचनाएँ से सु-सज्जित हो जाएगा. इस नज़्म से तो यह संकते मिल रहा है. बेहद उम्दा. शुभ-कामनाएं
बहुत सुन्दर नज़्म....नरेश जी अब गुम ना हो जाना .....एक आदत हो गई है आपके ब्लॉग को देखने की...
बढ़िया है भाई.....बड़ी अच्छी तरह से यादें संजोई है आपने इस नज़्म में....दरख़्त पर लिखे नाम से एक ज़मान याद आ जाता है
बढ़िया है भाई.....बड़ी अच्छी तरह से यादें संजोई है आपने इस नज़्म में....दरख़्त पर लिखे नाम से एक ज़मान याद आ जाता है
Sundar nazam. Bahut achchi prastuti.
नाशाद मैं आज भी वहीँ खडा हूँ
वो सूखा दरख़्त भी वहीँ खडा है
लेकिन उस पर तुम्हारा नाम आज भी खुदा है
Behatareen panktiyaan, Waah Nashaad sahab
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