गुरुवार, 8 सितंबर 2011

जिंदगी जैसे थम गई है 

आज अचानक लगता है मुझे जैसे 
किसी मोड़ पर आकर यादें ठहर गई 
इसी मोड़ पर मैंने कुछ खोया था 
दिल अन्दर ही अन्दर बहुत रोया था 
कोई जो चलता रहा सदीयों तक साथ हमारे 
इसी मोड़ से हमसे  दूर हो गया था 

जिसकी करीबी का अहसास मुझे हर पल था 
जिसका साया हर कड़ी धूप में मेरे सर था 
मेरी सांसें उसी के दम पर चलती थी 
मेरी जिंदगी उसी के इर्द-गिर्द रहती थी 
वो अहसास वो साथ बहुत दूर हो गया है 

दिल उसकी याद में बहुत रोया 
मगर आँखों से कोई कतरा बाहर नहीं आया 
आंसू जैसे जम चुके थे 
साँसें जैसे कहीं थम चुकी थी 
आज ऐसा लगता है नाशाद 
जिंदगी थम सी गई है 
राह तो है मगर मंजिल कहीं गुम गई है 
जिस्म है  मौजूद इस जहां में 
मगर रूह मेरी कहीं दूर हो गई है 
ऐ मेरे खुदा  मेरे जन्मदाता 
आपके बिना दिन छोटे और रातें लम्बी हो गई है 
मैं जिंदा हूँ मगर जिंदगी कहीं खो गई है 
नाशाद मेरी जिंदगी कहीं खो गई है 

( हमारे पापा की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि ) 



2 टिप्‍पणियां:

S.N SHUKLA ने कहा…

ख़ूबसूरत रचना , सुन्दर प्रस्तुति , बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति
बाबु जी को विनम्र श्रद्धांजलि