बर्फ सी मौहब्बत
शायद किसी बर्फ की सी थी तुम्हारी मौहब्बत
जो कुछ ही दिनों में पिघलकर कहीं दूर बह गई
शायद किसी बर्फ की सी थी तुम्हारी मौहब्बत
जो कुछ ही दिनों में पिघलकर कहीं दूर बह गई
कुछ यादें ही थी तुम्हारी मेरी किस्मत में शायद
वो भी वक्त की आंधी में रेत सी कहीं दूर उड़ गई
तन्हाईयों में ही साथ था तुम्हारा; मेरे ख्यालों में
सन्नाटों के आते ही तन्हाई भी कहीं गुम हो गई
डायरी के पन्नों में थी सिमटी तेरी कुछ मुलाकातें
उन पन्नों के पलटते ही वो भी कहीं पीछे छूट गई
नाशाद इक खुशबू की तरह थी तुम्हारी याद शायद
हवा के चलते ही उड़कर वो भी कहीं और चली गई
1 टिप्पणी:
बोहरा जी ..पन्ने पलटने से यादें और ज्यादा दिल के करीब आ जाती हैं ..बहुत सुन्दर ....
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