रविवार, 19 जुलाई 2009


तलाशती है आँखें

बीते लम्हे भूली बिसरी यादें
यही सब तलाशती है आँखें

अपनों की भीड़ में अक्सर
ख़ुद को तलाशती है ऑंखें

दुनिया भर के वीरानों में
खुशीयाँ तलाशती है आँखें

तन्हाईयों खामोशियों में
आवाजें तलाशती है आँखें

हर बेगाने चेहरे में
किसी को तलाशती है आँखें

बंद पड़े तमाम दरीचों में
अपनों को तलाशती है आँखें

सूनी हो चुकी गलियों में
बिछुडे यार तलाशती है आँखें

दम तोड़ती हुई जिंदगी में
साँसें तलाशती है आँखें

टूटते हुए सभी रिश्तों में
करीबीयाँ तलाशती है आँखें

शाम ए ग़ज़ल है यारों
नाशाद को तलाशती है आँखें

1 टिप्पणी:

V Singh ने कहा…

nareshji; aapki rachanon mein ghazab ka dard hai. Khoi hui zindgi ko talashna koi aapse seekhe. Mere paas shabd nahin hai. Main kin lafzon mein aapki tareef likhun. Aaradhana to maine ab tak 25 baar se bhi zyada baar padhi hai. Bahut bahut badhai.
Surya SIngh