गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

किसी ने भुला दिया है मुझे

शायद किसी ने भुला दिया है आजकल  मुझे
तभी तो आती नहीं हिचकियाँ आजकल मुझे

शायद कोई नहीं पुकारता है नींदों में अब मुझे
तभी तो आते नहीं है किसी के ख्वाब अब मुझे

शायद  कोई  नहीं  पढ़ता है  अब  मेरे लिखे ख़त
तभी तो नामावर नहीं मुस्कुराता है अब देख मुझे 

शायद कोई नहीं करता है मेरा ज़िक्र अब कहीं
तभी तो नहीं सुनाता कोई  नया अफसाना मुझे

शायद नहीं करता है अब कोई राहों में मेरा इंतज़ार
तभी तो मंजिल  नहीं नज़र  आती  अब करीब मुझे

शायद नहीं पढता है कोई मेरे लिखे शेर महफिलों में
तभी तो "नाशाद" वहां रौनक  नहीं नज़र आती मुझे 

3 टिप्‍पणियां:

V Singh ने कहा…

kalpna ke saath saath wastavikta ka milap! Hichkiyaan. Bahut hi sundar bhaisahabji. Aaj to maza aa gaya. Itni achchi kalpna kaise kar lete hain aap!

Unknown ने कहा…

aap itna achcha likhtey ho ki aapko to koi bhula hi nahin sakta. Mazaak kar rahi hoon. Bar bar padhney ko jee chahta hai. Bahut hi sundar hai.

Unknown ने कहा…

आपको अब कैसे कोई भुलायेगा ! जब भी हिचकी आये समझ लीजिएगा कि अवधेश ने याद किया है .

शायद कोई नहीं पढ़ता है अब मेरे लिखे ख़त
तभी तो नामावर नहीं मुस्कुराता है अब देख मुझे

यह शेर इस ग़ज़ल की जान है . कभी मौका मिला तो आप कि खुद कि आवाज़ में सुनना चाहूँगा.
बहुत ही सुन्दर और दिल को रोमांचित करा देने वाला ख़याल है . पुराना ज़माना याद करा दिया आपने.