वो गलीयाँ हमें बुलाती हैं
वो गलीयाँ हमें बुलाती हैं
जहाँ हमने बचपन गुजारा था
वो बचपन हमें पुकारता है
जिसमे हम ने खूब मेले देखे थे
वो मेले हमें लुभाते हैं
जिनमें हम दोस्तों के साथ घूमे थे
वो दोस्त हमें याद करते हैं
जिनके साथ महफिलें सजाई थीं
वो महफ़िलें हम बिन सुनी हैं
जिनमें हम ने कई गज़लें पढी थीं
वो गज़लें पढ़े जाने को तरसती हैं
जिनमे कोई नाम छुपा हुआ था
कोई हमें आज भी चाहता है
जिसे हम दरीचे में खड़ा पाते थे
वो दरीचे आज भी खुले हैं
जिनमे खड़ा कोई आवाजें देता था
वो आवाजें आज भी पीछा करती हैं
जिनसे गलीयाँ गुलज़ार रहती थीं
वो गलीयाँ आज भी हमें बुलाती हैं
शायद कोई आज भी हमें याद करता है
कोई आज भी दरीचे से पुकार रहा है
"नाशाद" शायद कोई बुला रहा है
शायद कोई इंतज़ार कर रहा है
कोई आज भी ......
कोई आज भी .....
मंगलवार, 20 अप्रैल 2010
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19 टिप्पणियां:
kash wo pal lota de koi
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
शब्द पुष्टिकरण hata do bhai
nahi to comments nahi karunga ab
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
kya khoob likha hai aapne .bahut see baatain yaad aa gayn..
poonam
Wah! Ek tees manme uthi jo hame bhi apne ateet me le gayi...
ये वो लम्हे हैं जो हमें हमारी जिंदगी के सबसे हसीन लम्हे लगते हैं और उम्र के इस मोड़ पर अक्सर याद आते हैं. बहुत उम्दा जोड़ा है आपने ताममं कड़ीयों को. बहुत ही खूब
वो गलीयाँ आज भी हमें बुलाती हैं
शायद कोई आज भी हमें याद करता है
कोई आज भी दरीचे से पुकार रहा है
"नाशाद" शायद कोई बुला रहा है
शायद कोई इंतज़ार कर रहा है
मुझे अपना बचपन याद आ गया. बस इसी तरह गलीयों में बचपन बीता था. आपने बहुत अच्छा लिखा है. यादों में खोना आपको है ना बहुत अच्छी तरह आता है और हमें भी आप यादों में ले जाते हो. वाहे गुरु
वो गलीयाँ हमें बुलाती हैं
जहाँ हमने बचपन गुजारा था
हम भी उनमें से ही है जो अभी तक उन गलियों में ही भटक रहे है,हर तीसरी रचना उन्ही गली मोहल्लों के नाम होती है . बड़ा सुकून है वहां ...सुन्दर रचना
कोई हमें आज भी चाहता है
जिसे हम दरीचे में खड़ा पाते थे
वो दरीचे आज भी खुले हैं
जिनमे खड़ा कोई आवाजें देता था
बीता हुआ वक्त ; पुरानी हवेलियां और आपकी भाषा में गुलज़ार गलीयाँ . मैं आज से करीब बीस - पच्चीस साल पीछे के जमाने में पहुँच गया. बहुत ही शानदार और एक यादगार ग़ज़ल लिख दी है आपने भाईसाहब. शब्दों का आपस में जोड़ बहुत ही खुबसूरत है. एक अलग तरह का रोमांच दिल में दौड़ गया. मुझे भी कुछ पुराने लोग याद आ गए. ढेर सारी शुभ-कामनाएं
नमस्ते भैय्या , मैंने आपकी यह रचना सूर्य विक्रमजीत के साथ ही बैठ कर पढ़ी. मेरा काम कुछ ऐसा है कि समय नहीं निकाल पाता हूँ. इस ग़ज़ल ने हमारे बीत दिनों की याद दिला दी. बहुत अच्छा लगा. जब भी मौका मिलता है आपके ब्लॉग को जरूर देखता हूँ. आपकी वजह से कंप्यूटर भी चलाना सीख गया हूँ. साहित्य की तरफ रुझान तो था अब आपकी वजह से कवितायें और गज़लें भी पढ़ना और सुनना तथा सुनाना सीख रहा हूँ. कमलकांत सहाय ( लखनऊ )
हाय नरेशजी ; आपका ब्लॉग आज पहली बार देखा . एक ही सांस में सब कुछ पढने की इच्छा होने लगी. आप बहुत अच्छा लिखते हो. आपकी यह ग़ज़ल बहुत पसंद आई. इस उम्र में बीते हुए वक्त को याद करना बहुत सुखद अनुभव होता है. आपने बहुत अच्छा लिखा है. जिस शब्द से एक पंक्ति ख़त्म हुई उसी से दूसरी को आपने बहुत ही सुन्दर तरीके से शुरू किया जो प्रभावित कर गया. मेरी आपको ढेर सारी शुभ-कामनाएं आने वाले भविष्य के लिए.
Nashaad kyun?
Shaad kyun nahin?
Tasweero aur alfaazon me ateet saaf nazar aaya!
Mubaarak!
वो गलियाँ हमें बुलाती हैं
जहां बचपन हमने गुजारा था
वो मेले हमें लुभाते हैं ..
बोहरा जी बहुत सोहणी नज़्म ...
बचपन दियां यादां ते कदे भुल्दियाँ नहीं .....!!
आप सभी को ये नज़्म पसंद आई ; मुझे बहुत ख़ुशी हुई. बचपन कभी भी भुलाया नहीं जा सकता. उसकी यादें वो खुशबू होती है जो सावन की पहली बूँदें जब धरती को छूती है और हम जिसका एहसास करते ही ख़ुशी से झूम उठते हैं. आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया.
कोई हमें आज भी चाहता है
जिसे हम दरीचे में खड़ा पाते थे
वो दरीचे आज भी खुले हैं
जिनमे खड़ा कोई आवाजें देता था
वो आवाजें आज भी पीछा करती हैं
जिनसे गलीयाँ गुलज़ार रहती थीं
मुझे आज भी याद है मेरे दारजी भी इसी तरह घर की छत से हमें स्कूल जाता देख आवाजें देते थे और हाथ हिलाते थे. आज वो नहीं है और ना ही हम पंजाब में हैं. मैं तो रो पडी पूरी पोएम पढ़ते पढ़ते. किन्ने अच्छे शब्द सेलेक्ट किये हैं आपने. once again congrats and thanks for a wonderful gazal.
I was just ten when I came to London. I st
वो गलीयाँ आज भी हमें बुलाती हैं
शायद कोई आज भी हमें याद करता है
कोई आज भी दरीचे से पुकार रहा है
बहुत दर्द झलक कर आया है अपनी पुरानी यादों और पुराने लोगों के लिए. बहुत भावपूर्ण है. बधाई और शुभकामना
अपनी गलीयों को भला कौन भुला सकता है नरेशजी. ये वो सुनहरे दिन होए हैं जिनकी याद ज़िन्दगी भर नहीं जाती. हमेशा ऐसा लगता है कि हम फिर से उन दिनों में लौट जाएँ. एक यादगार रचना. यादें ..... सुनहरी यादें ...... किसी की यादें ............
हमारी ज़िन्दगी गलीयों के इर्दगिर्द ही घुमती है. क्यूंकि असली जिंदगी गलीयों में ही तो बसती है..
क्या खूब लिखा है आपने -- वो आवाजें आज भी पीछा करती हैं
जिनसे गलीयाँ गुलज़ार रहती थीं
आप यादों की गलीयों में लेकर गए इसके लिए आपका बेहद शुक्रिया. आपने गुज़र ज़माना याद दिला दिया. बेहतरीन लिखा है.
वो गलीयाँ हमें बुलाती हैं
जहाँ हमने बचपन गुजारा था
वो बचपन हमें पुकारता है
जिसमे हम ने खूब मेले देखे थे
वो मेले हमें लुभाते हैं
जिनमें हम दोस्तों के साथ घूमे थे
वो दोस्त हमें याद करते हैं
जिनके साथ महफिलें सजाई
ab wo wapas milna muskil h ye rachna bahut hi sunder h es m jo pictures h wo really jod ki galiyo ki yaad dila rahi h jaha baar baar jane ko ji cahta kyu ki jod se etne dur jo h jaha bachpan bita tha,...
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