महक गई हवा
ना जाने किस की याद से महक गई हवा
मेरे आँचल को फिर से छेड़ गई हवा
सावन की घटा को जैसे लेकर आती है हवा
पयाम फिर से किसी का लेकर आई है हवा
मैं भी थी गुमसुम चुपचाप सी थी हवा
ज़िक्र किसी का आते ही मचल गई हवा
दिल था खोया खोया और कहीं गुम थी हवा
बेसाख्ता किसी की याद बन बहने लगी हवा
एक गाँव से दूसरे गाँव तू तो बहती है हवा
मुझे भी अपने संग पी के गाँव उड़ा ले चल हवा
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
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26 टिप्पणियां:
sundar rachna...
ना जाने किस की याद से महक गई हवा
मेरे आँचल को फिर से छेड़ गई हवा
प्रथम दोनों पंक्तियाँ ही इतनी बेहतर है कि रंग जम जाता है. अति सुन्दर कविता.
बेसाख्ता किसी की याद बन बहने लगी हवा
की गल्ल है नरेश जी !! आप तो भौत ही सोणे गीत शीत लिखते हो जी. मैं संगीतकार बन जाऊं क्या !!!
I was just joking; but its a beautiful song flowing with air and fragarence of you.
एक प्रेमिका की व्यथा उभर कर आती है और एक अनजानी सी तस्वीर सामने आ जाती है. धन्यवाद एक और अच्छी कविता के लिए.
very good Sir.
वाह वाह वाह . और एक वाह. मुझे बहुत पसंद आया.
मैं भी थी गुमसुम चुपचाप सी थी हवा
ज़िक्र किसी का आते ही मचल गई हवा
आपने बहुत ही अच्छा लिखा है. महक गई हवा. शीर्षक ही बहुत रोमांटिक है. बधाईयाँ नरेश जी.
ना जाने किसकी याद से महक गई हवा।
ना डॉक्टर का पता, न और कोई दवा।
बहुत ही अच्छी कविता।
बहुत खूब!!!!!
बेहतरीन रचना!!!!
एक गाँव से दूसरे गाँव तू तो बहती है हवा
मुझे भी अपने संग पी के गाँव उदा ले चल हवा
हवा को नामाबर बनकर प्रेमिका ने जो पिया मिलन की गुहार लगाईं है वो बहुत सुन्दर बन पडी है. अच्छी कविता है.
तनहाइयां ; यादें , मिलने की चाह और हवा एकमात्र राह -- कितना सुन्दर बना है ये गीत.
खुबसूरत रचना के लिए बधाई.
सावन की घटा को जैसे लेकर आती है हवा
पयाम फिर से किसी का लेकर आई है हवा
सावन में अपने पिया को याद करने का ज़िक्र हमारे लगभग हर प्रदेश ले लोकगीतों में मिलता है. आपने इस का बहुत सुन्दरता और सादगी से प्रयोग किया है. आपकी भाषा बहुत सरल है.बहुत अच्छा लगता है ऐसी भाषा पढ़कर.
jabardast likhte hain aap janaab........
ना जाने किस की याद से महक गई हवा
बहुत ही शानदार . अत्यंत ही प्रसंशनीय .
आपकी कविता पहली बार पढ़ी और पढ़ते ही सारा माहौल महकने लगा. सच में बहुत सुन्दर प्रयास है और सफल प्रयास है. नीचे लिखी पंक्तियों ने मन को मोह लिया ...
दिल था खोया खोया और कहीं गुम थी हवा
बेसाख्ता किसी की याद बन बहने लगी हवा
फैशन की दुनिया से जुडी हूँ लेकिन कविताओं का भी शौक है. आपकी कवितायें और ग़ज़लें पढ़ी बहुत अच्छी लगी. सरल भाषा होने के कारण बहुत जल्दी समझ में आ गई.
प्रेम में हवा का इतना अच्छा महत्त्व और इतनी अच्छी भूमिका ! बहुत मजा आया. अत्यंत सुन्दर रचना. धन्यवाद
कुछ दिन पहले पहली बार आपके ब्लॉग पर कुछ ग़ज़लें और कवितायें पढ़ी. आप अच्छा लिखते हो. इस ग़ज़ल की सबसे ख़ास बात है इसका यह शेर --
दिल था खोया खोया और कहीं गुम थी हवा
बेसाख्ता किसी की याद बन बहने लगी हवा
यह सच है कि किसी कि याद बनकर हवाएं बहती है. अगर शिद्दत से सोचें तो महसूस किया जा सकता है. बस बेपनाह मौहब्बत होनी चाहिये. शुक्रिया इस शानदार ग़ज़ल के लिए नाशाद जी.
पूरी की पूरी ग़ज़ल ही महक रही है. अब इससे ज्यादा क्या लिखूं. बस मैं इसे पढ़ती जा रही हूँ.
नरेश चन्द्र वोहरा जी ,आप के दिल में एक तड़प है जप शब्दों में बह कर निकलती है .लिखते रहिये बधाई.
अत्यंत ही मनभावन लेखन है. एक लम्बे अरसे के बाद इतने सरल और भावनाओं से ओतप्रोत प्रेम-गीत पढने के लिए मिले हैं. आपका लेखन ऊंचे स्तर का है. असंख्य शुभ-कामनाएं.
क्या खूब लिखा है -
ना जाने किस की याद से महक गई हवा
मेरे आँचल को फिर से छेड़ गई हवा
अपने महबूब की याद और हवा की छेडखानी. बेहद शानदार. हमारी दुआएं आप और भी अच्छा लिखें.
जब किसी की याद आती है तो उसकी महक हवा के साथ हर तरफ फ़ैल ही जाती है. बहुत अच्छा लिखा है.
. अत्यंत ही प्रसंशनीय .
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